1.मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है? /कबीर ने मीठी वाणी का क्या महत्त्व बताया है?
उत्तर- कबीर कहते हैं कि हमें मीठी वाणी बोलनी चाहिए। मीठी वाणी बोलने से मन का अहंकार दूर हो जाता है, तन को शीतलता मिलती है। सुनने वालों को भी सुख प्राप्त होता है । मधुर वाणी से सुननेवाले व्यक्ति को प्रभावित कर असंभव कार्य को भी संभव किया जा सकता है। मीठी वाणी के प्रभाव से शत्रुता और ईर्ष्या की भावना दूर हो जाती है।
2. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहाँ ‘सोना‘ और ‘जागना‘ किसके प्रतीक हैं?
संसार में सुखी वे हैं जो ईश्वर को भूलकर सांसारिक सुखों में डूबे हुए हों। ये खाते हैं और सोते हैं अर्थात मोह-माया में लिप्त होकर जीवन बिताते हैं।
दुखी वे हैं जो मोह-माया में फँसे लोगों को देखकर चिंतित हैं, ये दिन-रात ईश्वर से मिलने के लिए जागते हैं। ये इस बात से परिचित हैं कि संसार नश्वर है और ईश्वर ही सत्य है। ‘सोना’ का आशय है ईश्वर के प्रति उदासीन होना। ‘जागना’ का आशय है-ईश्वर के प्रति आस्थावान होना।
3. ईश्वर से अलग होने पर भक्त की स्थिति कैसी हो जाती है?
कबीर दास कहते हैं कि जिस मनुष्य के तन-मन को विरह (ईश्वर से अलग होना) रूपी साँप ने घेर लिया है, उस पर किसी भी मंत्र का असर नहीं होता। उसी प्रकार ईश्वर के वियोग में मनुष्य जी नहीं सकता, अगर जीता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है।
4.कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए ।
कबीर की भाषा सरल और सहज है। कबीर के द्वारा रचित साखियों में पूर्वी हिंदी, अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं का मिश्रण है। इसी कारण इनकी भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा जाता है। कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है। कबीर भाषा का मनमाना प्रयोग करते थे। वे भाषा को जानबूझकर सँवारने का प्रयास नहीं करते। वे जैसा बोलते थे, वैसा ही लिखते थे। उन्होंने जनचेतना और जनभावनाओं को अपने साखियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया।
5 – कबीर की साखियों का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
इस पाठ में संकलित साखियों के माध्यम से कबीरदास जी मनुष्य को नीति का संदेश देते हैं।
पहली साखी के द्वारा कबीरदास जी मीठी वाणी के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं। मीठी वाणी बोलने वाले तथा सुनने वाले दोनों को सुख पहुँचाती है।
दूसरी साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर तो प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करता है, परंतु मनुष्य उसे चारों ओर ढूँढ़ता फिरता है। जिस प्रकार कस्तूरीमृग अपनी कस्तूरी को सारे वन में ढूँढ़ता फिरता है, उसी प्रकार मनुष्य ईश्वर को अन्यत्र ढूँढता रहता है।
तीसरी साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि अहं के मिटने पर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है तथा अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है।
चौथी साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि साधक (विचारक) ही दुखी और चिंतामग्न है तथा वह ईश्वर के लिए सदा व्याकुल रहता है।
पाँचवीं साखी में कबीरदास जी विरह की व्याकुलता के विषय में बताते हैं कि राम यानी ईश्वर के विरह में व्याकुल व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। अगर वह जीवित रहता भी है तो वह पागल हो जाता है।
छठी साखी में कबीरदास जी निंदक का महत्त्व स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि निंदक साबुन तथा पानी के बिना ही स्वभाव को निर्मल कर देता है।
सातवीं साखी में कबीरदास जी केवल पुस्तक पढ़-पढ़कर पंडित बने लोगों की निंदा करते हैं तथा सच्चे मन से प्रभु का नाम स्मरण करने को महत्त्व देते हैं।
आठवीं साखी में कबीरदास जी विषय-वासना रूपी बुराइयों को दूर करने की बात करते हैं।
इस प्रकार सभी साखियाँ मनुष्य को नीति संबंधी संदेश देती हैं।
मीरा के पद
प्रश्न-1 पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?
उत्तर- मीरा ने कृष्ण को उनके रक्षक-रूप की याद दिलाई है। मीरा कहती है – हे प्रभु! आपने भरी सभा में वस्त्र बढ़ाकर द्रौपदी की लाज रखी, नरहरि का रूप धारण कर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की, डूबते हुए गजराज (ऐरावत) को मगरमच्छ से बचाया था। इसी प्रकार आप मेरा भी उद्धार करें अर्थात् मेरा भी दुःख दूर करें।
प्रश्न-2 दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : दूसरे पद में मीरा श्याम की चाकरी करना चाहती हैं क्योंकि वे उनकी अनन्य भक्त हैं और निरंतर उनकी सेवा में लगे रहना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण के लिए बाग़ लगवाना चाहती हैं, प्रतिदिन सवेरे उठकर उनके दर्शन करना चाहती हैं और वृंदावन की कुंज-गलियों में घूम-घूमकर उनकी लीलाओं का गान करना चाहती हैं जिससे दर्शन, स्मरण और भाव-भक्ति की पूर्ति हो सके ।
प्रश्न-3 मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर -: मीराबाई ने श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन इस प्रकार किया है- श्रीकृष्ण का रूप-सौंदर्य सबको आकर्षित कर देता है। उन्होंने अपने माथे पर मोर के पंख का बना सजीला मुकुट पहन रखा है। गले में वैजयंती माला सुशोभित है। उन्होंने पीले रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं। मीरा कहती हैं कि जब श्रीकृष्ण वृंदावन में गायें चराते हुए बाँसुरी बजाते हैं तो सब का मन मोह लेते हैं।
प्रश्न-4- मीराबाई की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- मीराबाई के पदों की भाषा में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण पाया जाता है। वहीं पंजाबी, खड़ी बोली और पूर्वी के प्रयोग भी मिल जाते हैं। ब्रज की सुकोमलता और राजस्थान की अनुनासिकता के कारण इसमें अद्भुत मिठास आ गई है। भाषा सरल एवं सहज है। पदावली कोमल, भावानुकूल व प्रवाहमयी है, पदों में भक्तिरस है तथा अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है। मीरा की भाषा-शैली को गीत-शैली कहा जा सकता है। इसमें मधुरता और संगीतात्मकता के दर्शन होते हैं।
प्रश्न-5 मीराबाई श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?
उत्तर- मीरा श्रीकृष्ण को पाने के लिए अनेक कार्य करने को तैयार हैं। वे नौकर बनकर श्रीकृष्ण की सेवा करना चाहती हैं। उनके विहार करने के लिए बाग-बगीचे लगाना चाहती हैं। वृंदावन की गलियों में उनकी लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं, ऊँचे-ऊँचे महल बनाकर उनके बीच-बीच में फुलवारियाँ रखना चाहती हैं, खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि वे आसानी से श्रीकृष्ण के दर्शन कर सकें। वे कुसुंबी साड़ी पहनकर आधी रात को यमुना नदी के किनारे श्रीकृष्ण के दर्शन पाना चाहती हैं।
प्रश्न 6-मीरा के पदों का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
पहले पद में मीराबाई मनुष्य मात्र की पीड़ा हरने की बात कहती हैं। वे विभिन्न ऐतिहासिक एवं पौराणिक उदाहरणों द्वारा अपनी बात की पुष्टि करती हैं। वे द्रौपदी, प्रह्लाद, गजराज के उदाहरण देकर उन पर हुई ईश्वरीय कृपा की याद दिलाती हैं। इन उदाहरणों के माध्यम से वे ईश्वर को कर्तव्यबोध कराती हैं। उनके कथनानुसार केवल ईश्वर ही जन-जन की पीड़ा हर सकते हैं।
दूसरे पद में मीरा अपने आराध्य की दासी बनकर रहने की इच्छा प्रकट करती हैं। दासी बनकर वे अपने आराध्य के सभी दैनिक कार्य करना चाहती हैं। वे ईश्वर के दर्शन की अभिलाषा करती हैं। उनके प्रभु पीतांबर, सिर पर मोरमुकुट एवं गले में वैजंतीमाला धारण करते हैं। वे वृंदावन में गायें चराते हैं। वे कुसुंबी साड़ी पहनकर आधी रात के समय अपने आराध्य कृष्ण के दर्शन के लिए यमुना के तट पर जाना चाहती हैं। मीरा के लिए उनके ईश्वर ही सर्वस्व हैं। प्रभु-मिलन न होने के कारण उनका हृदय अधीर हो रहा है।
तताँरा वामीरो कथा
प्रश्न 1. निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?
उत्तरः- निकोबारियों का विश्वास था कि पहले अंडमान-निकोबार एक ही द्वीप थे। इनके दो होने के पीछे तताँरा वामीरो की लोक कथा प्रचलित है। ये दोनों प्रेम करते थे। दोनों एक गाँव के नहीं थे । इसलिए रीति अनुसार विवाह नहीं हो सकता था। रुढ़ियों में बंधे होने के कारण वह कुछ कर भी नहीं सकता था । उसे अत्यधिक क्रोध आया और उसने क्रोध में अपनी तलवार धरती में गाड़ दी और उसे खींचते-खींचते बहुत दूर चला गया। इससे ज़मीन दो भागों में बँट गई – एक निकोबार और दूसरा अंडमान।
प्रश्न 2- . वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तरः- वामीरो के मिलने के पश्चात् तताँरा हर समय वामीरो के ही ख्याल में ही खोया रहता था। उसके लिए वामीरो के बिना एक पल भी गुजारना कठिन-सा हो गया था। वह शाम होने से पहले ही लपाती की उसी समुद्री चट्टान पर जा बैठता, जहाँ वह वामीरो के आने की प्रतीक्षा किया करता था।
प्रश्न 3. प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?
उत्तरः- प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए मेले, पशु-पर्व कुश्ती, गीत संगीत आदि अनेक प्रकार के आयोजन किए जाते थे। जैसे पशु-पर्व में हृष्ट-पुष्ट पशुओं का प्रदर्शन किया जाता था तो पुरुषों को अपनी शक्ति प्रदर्शन करने के लिए पशुओं से भिड़ाया जाता था। इस तरह के आयोजनों में सभी गाँववाले भाग लेते थे और गीत-संगीत के साथ भोजन आदि की भी व्यवस्था की जाती थी।
प्रश्न 4. . रूढियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।
रूढियाँ और बंधन समाज को अनुशासित करने के लिए बनते हैं परंतु जब यही बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। तभी हम समय के साथ आगे बढ़ पाएँगे। बंधनों में जकड़कर व्यक्ति और समाज का विकास, सुख-आनंद, अभिव्यक्ति आदि रुक जाती है। इस कहानी के संदर्भ में देखा जाए तो तताँरा वामीरो का विवाह एक रूढ़ी के कारण नहीं हो सकता था जिसके कारण उन्हें जान देनी पड़ती है। इस तरह की रूढ़ियाँ भला करने की जगह नुकसान करती हैं। यदि हमें आगे बढ़ना है तो इन रूढ़ीवादी विचारधाराओं को तोड़ना ही होगा।
प्रश्न-5, निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
उत्तर- जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।
इस पंक्ति का आशय यह है कि तताँरा अपने अपमान को सहन नहीं कर पाया। अपने अपमान को शांत करने के लिए उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर धरती में अपनी तलवार घोंप दी। जिसके परिणास्वरूप धरती दो टुकड़ों में बँट गई।
कविता – मनुष्यता (मैथिलीशरण गुप्त)
प्रश्न 1-कवि ने कैसी मृत्यु को ‘सुमृत्यु‘ कहा है?
उत्तरः जो मनुष्य दूसरों के लिए अच्छे काम कर जाता है, उस मनुष्य को मरने के बाद भी लोग याद रखते हैं। कवि ने ऐसी मृत्यु को ही सुमृत्यु कहा है। जो परोपकार के कारण सम्माननीय हो, वह सुमृत्यु है।
प्रश्न 2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तरः जो आदमी पूरे संसार में आत्मीयता और भाईचारे का संचार करता है, उसी व्यक्ति को उदार माना जा सकता है। उदार व्यक्ति का प्रत्येक कार्य परोपकार के उद्देश्य से होता है। वह संपूर्ण विश्व में अपनत्व का भाव जगाता है। वह अपने आपको विश्व का एक अभिन्न अंग बना देता है। उदार व्यक्ति की कीर्ति चारों ओर फैलती है। स्वयं धरती भी उसके प्रति कृतार्थ भाव मानती है। वास्तव में जो व्यक्ति दूसरों के लिए अपना तन-मन-धन अर्थात् सर्वस्व समर्पित कर देता है, वही उदार या सहृदय कहलाता है। वह पूरे संसार के लिए समानता और अखंडता का भाव रखता है।
प्रश्न 3.कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता‘ के लिए क्या संदेश दिया है?
उत्तरः कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए एक अहम संदेश दिया है। वे परोपकार का संदेश देना चाहते हैं। दूसरे का भला करने में चाहे अपना नुकसान ही क्यों न हो, लेकिन हमेशा दूसरे का भला करना चाहिए। ऋषि दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए और वृत्रासुर के वध के लिए अपनी अस्थियाँ दान में दे दी थीं। राजा रंतिदेव ने स्वयं भूख से व्याकुल होते हुए भी अपने हाथ में पकड़ा हुआ भोजन का थाल भूखों को दे दिया था। गांधार के राजा उशीनर ने शरणागत कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस तक दान कर दिया था। कर्ण ने ब्राह्मण वेश में आए देवराज इंद्र को अपने शरीर का रक्षा कवच (चर्म) तक दान में दे दिया था। इन उदाहरणों के माध्यम से कवि मनुष्यता को त्याग, बलिदान, मानवीय एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करें। वह दीन-दुखियों, ज़रूरतमंदों के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहे। निःस्वार्थ भाव से जीवन जीना, दूसरों के काम आना यही ‘मनुष्यता’ का वास्तविक अर्थ है, कवि जन-जन में इस भाव को जगाने का संदेश देना चाहता है।
प्रश्न-4. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
उत्तरः मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य का जीवन आपसी सहकारिता पर निर्भर करता है। इसलिए कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा दी है। इससे आपसी मेल-भाव बढ़ता है तथा हमारे सभी काम सफल हो जाते हैं। यदि हम सभी एक होकर चलेंगे तो जीवन-मार्ग में आने वाली हर विघ्न-बाधाओं पर विजय पा लेंगे। जब सबके द्वारा एक साथ प्रयास किया जाता है तो वह सार्थक सिद्ध होता है। सबके हित में ही हर एक का हित निहित होता है। आपस में एक दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ने से प्रेम व सहानुभूति के संबंध बनते हैं तथा परस्पर शत्रुता एवं भिन्नता दूर होती है। इससे मनुष्यता को बल मिलता है। कवि के अनुसार यदि हम एक दूसरे का साथ देंगे तो हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकेंगे ।
प्रश्न 5- ‘मनुष्यता‘ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तरः इस कविता के माध्यम से कवि आपसी भाईचारे का संदेश देना चाहते हैं। मैथिलीशरण गुप्त जी ने मानव मात्र को त्याग, प्रेम, बलिदान, परोपकार, सत्य, अहिंसा जैसे मानवीय गुणों को अपनाने का संदेश दिया है। मानव-जीवन एक विशिष्ट जीवन है। अतः अपने से पहले दूसरों की चिंता करते हुए अपनी शक्ति, अपनी बुद्धि और अपनी वैचारिक शक्ति का सदुपयोग करना मानव का कर्तव्य है। प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि मानवीय एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे। वह दीन-दुखियों, ज़रूरतमंदों के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहे। वह पौराणिक कथाओं के माध्यम से विभिन्न महापुरुषों जैसे दधीचि, कर्ण, रंतिदेव के अतुलनीय त्याग से प्रेरणा ले। ऐसे सत्कर्म करे जिससे मृत्यु के बाद भी लोग उसे याद करें। उसका यश मानव मात्र के हृदय में जीवित रहे। निःस्वार्थ भाव से जीवन जीना, दूसरों के काम आना व स्वयं ऊँचा उठने के साथ-साथ दूसरों को भी ऊँचा उठाना ही ‘मनुष्यता’ का वास्तविक अर्थ है।
कविता – पर्वत प्रदेश में पावस
कवि – सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तरः पावस ऋतु में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं:-
* इस ऋतु में वातावरण हर वक़्त बदलता रहता है।
* विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं ।
* पर्वत के नीचे फैले तालाब में पर्वत की परछाईं दिखाई देती है।
* मोती की लड़ियों की तरह बहते झरने ऐसे लगते हैं मानो वे पर्वत का गुणगान कर रहे हों ।
* पर्वत पर उगे ऊँचे वृक्ष आसमान को चिंतित होकर निहार रहे हैं।
* तेज़ वर्षा के कारण चारों तरफ़ धुंध छा जाती है।
* लगता है आकाश धरती पर टूट पड़ा है और शाल के पेड़ भयभीत होकर धरती में धँस गए हैं।
* ऐसा प्रतीत होता है कि तालाब में आग लग गई है और इंद्रदेव जादू के खेल दिखा रहे हैं।
प्रश्न 2. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे हैं और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तरः पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महत्त्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।
प्रश्न 3. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर : झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। बहते हुए झरने की तुलना मोती की लड़ियों से की गई है। झरने के बहते पानी की बूँदें मोती की लड़ियों के समान लगती हैं।
प्रश्न 4.इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कवि सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के कुशल चितेरे हैं। वे प्रकृति पर मानवीय क्रियाओं को आरोपित करने में सिद्धहस्त हैं। ‘पर्वत प्रदेस में पावस’ कविता में कवि ने प्रकृति, पहाड़, झरने, वहाँ उगे फूल, शाल के पेड़, बादल आदि पर मानवीय क्रियाओं का आरोप किया है, इसलिए कविता में जगह-जगह मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है।
कविता में आए मानवीकरण हैं-
- पर्वत द्वारा तालाब रूपी स्वच्छ दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर आत्ममुग्ध होना।
- पर्वत से गिरते झरनों द्वारा पर्वत का गुणगान किया जाना।
- पेड़ों द्वारा ध्यान लगाकर आकाश की ओर देखना ।
- पहाड़ का अचानक उड़ जाना।
- आकाश का धरती पर टूट पड़ना।
कविता में कवि ने मानवीकरण अलंकार के प्रयोग से चार चाँद लगा दिए हैं।
5.‘पर्वत प्रदेश में पावस‘ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए ।
उत्तर- प्रस्तुत कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षा के समय में क्षण-क्षण होने वाले परिवर्तनों व अलौकिक दृश्यों का बड़ा सजीव चित्रण किया है। कवि कहता है कि महाकार पर्वत मानो अपने ही विशाल रूप को अपने चरणों में स्थित बड़े तालाब में अपने हज़ारों सुमन रूपी नेत्रों से निहार रहा है। बहते हुए झरने दर्शकों की नस-नस में उमंग एवं उल्लास भर रहे हैं। पर्वतों के सीनों को फाड़ कर उच्चाकांक्षाओं से युक्त पेड़ मानो बाहर आए हैं और अपलक व शांत आकाश को निहार रहे हैं। फिर अचानक ही पर्वत मानो बादल रूपी सफ़ेद और चमकीले पारे के परों को फड़फड़ाते हुए उड़ गए हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी मालूम होता है कि मानो धरती पर आकाश टूट पड़ा हो और उसके भय से विशाल शाल के पेड़ ज़मीन में धँस गए हों। तालों से उठती भाप ऐसी जान पड़ती है, मानो उनमें आग-सी लग गई हो और धुआँ उठ रहा हो। कवि कहता है कि यह सब देखकर लगता है कि जैसे इंद्रदेव ही अपने इंद्रजाल से खेल रहे हैं।
कविता – तोप
कवि-वीरेन डंगवाल
प्रश्न 1. विरासत में मिली चीज़ों की बड़ी सँभाल क्यों होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः विरासत में हमें अच्छी और बुरी दोनों तरह की चीजें मिल सकती हैं। ये हमारी धरोहर होती हैं। इनसे हमारे इतिहास का परिचय भी प्राप्त होता है। अच्छी चीजें हमें ये बताती हैं कि हमारे पूर्वजों की क्या उपलब्धियाँ थीं तथा इनसे उनके जीवन का परिचय मिलता है। उनसे जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। हमें पता चलता है कि उन्होंने कौन-से अच्छे काम किए ताकि हम उन्हें दोहरा सकें। बुरी चीजें हमें ये बताती हैं कि हमारे पूर्वजों ने क्या ग़लतियाँ कीं ताकि हम उन्हें फिर से न दोहराएँ। हमें गुलाम नहीं होना पड़े ।
प्रश्न 2. इस कविता से आपको तोप के विषय में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तरः इस कविता से हमें तोप के बारे में यह पता चलता है कि वह ईस्ट इंडिया कंपनी के ज़माने की है। यह एक विशाल तोप है जिसने अपने ज़माने में कितने ही सूरमाओं की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह तोप हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। इसका प्रयोग अंग्रेज़ों ने 1857 के संग्राम को कुचलने के लिए किया था ।
प्रश्न 3. कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है?
उत्तरः कंपनी बाग़ में रखी तोप एक अहम सीख देती है। कंपनी का बाग़ और कंपनी की तोप दोनों ही अंग्रेज़ी राज की निशानी हैं। बाग़ एक अच्छी निशानी है तो तोप एक बुरी निशानी है। एक ओर तो अंग्रेज़ी राज से हमें आधुनिक शिक्षा और रेल मिली तो दूसरी ओर हमें गुलामी की बेड़ियाँ मिलीं। यह तथ्य बताता है कि हर चीज़ के दो पहलू होते हैं; एक अच्छा और एक बुरा। तोप सीख देती है कि हम भविष्य में ऐसी कोई ग़लती न करें, जो हमने पहले की थी। भविष्य में कोई और ऐसी कंपनी यहाँ पाँव न जमाने पाए, जिसके इरादे नेक न हों और फिर वही तांडव मचे, जिसके घाव अभी तक हमारे दिल में हरे हैं।
प्रश्न 4.‘तोप‘ कविता का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तरः ‘तोप’ कविता का मूल भाव यह है कि कोई चाहे कितना ही बलवान व ताक़तवर क्यों न हो, अत्याचारियों के अत्याचार का अंत एक-न-एक दिन अवश्य हो जाता है। हमें अहंकार नहीं करना चाहिए। हमें अपने देश की रक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए। अपने पूर्वजों से विरासत में मिली वस्तुओं का तथा उनके बलिदान का सम्मान करना चाहिए ।
प्रश्न 5. कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दो अवसर कौन-से होंगे?
उत्तरः कविता में जिन दो अवसरों पर तोप को चमकाने की बात कही गई है, वे हैं
• 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस)
• 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस)।
ये दोनों तिथियाँ हमारे देश के लिए ऐतिहासिक दिवस की प्रतीक हैं। इन्हें हम राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं। देश पूरी तरह से राष्ट्रीय-पर्व का हिस्सा बनता है। इन्हीं दोनों तिथियों पर इस तोप को भी चमकाया जाता है क्योंकि यह तोप हमारे विजेता और आज़ादी की प्रतीक होने के कारण एक राष्ट्रीय महत्त्व की वस्तु बन चुकी है। इसलिए राष्ट्रीय महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इस तोप को चमकाया जाता है ताकि लोगों के मन में राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा मिले और लोगों को स्वतंत्रता दिलानेवाले वीरों की याद दिलाई जा सके।
प्रश्न 6.‘तोप‘ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए ।
उत्तरः भारतवर्ष में व्यापार करने के उद्देश्य से आई “ईस्ट इंडिया कंपनी” धीरे-धीरे हमारी शासक बन गई ।उसने कई जगह बाग लगवाए और तोपें भी बनवाई। बाद में देश के कई जाँबाज़, जो देश को पुनः आज़ाद करने के लिए निकले थे, उन्हें मौत के घाट इन्हीं तोपों से उतार दिया गया। अब अंग्रेज़ी शासकों के चले जाने के बाद कंपनी बाग़ों की देखभाल की जाती है, वैसे ही साल में दो बार (15 अगस्त, 26 जनवरी को) इन तोपों को चमकाया जाता है। इन्हें हम अपने पूर्वजों की धरोहर के रूप में सँभालकर रखते हैं। यह तोप, जिसका वर्णन कविता में किया गया है, कानपुर में कंपनी बाग के प्रवेश द्वार पर रखी हुई है। बाग़ को देखकर व जानकर हमें देश और समाज की प्राचीन उपलब्धियों का भान होता है तथा तोप हमें बताती है कि हमारे पूर्वजों से कब, क्यों और कहाँ चूक हुई थी। यह हमें सचेत करती है कि उस गलती की पुनरावृत्ति अब कतई न होने पाए । कंपनी बाग़ में आने वाले सैलानियों के लिए यह एक दर्शनीय वस्तु है। बच्चे इस पर बैठकर घुड़सवारी का आनंद लेते हैं। उसके बाद चिड़ियाँ इस पर बैठकर कुछ गपशप करती हैं तथा कभी-कभी इसके अंदर भी घुस जाती हैं। यह तोप हमें बताती है कि चाहे कितना ही बड़ा क्रूर अत्याचारी शासक क्यों न हो, उसका भी एक दिन मेरी ही तरह हमेशा के लिए मुँह बंद हो जाता है।
कर चले हम फ़िदा ( कवि-कैफ़ी आज़मी)
प्रश्न 1. क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?
उत्तरः यह गीत सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखा गया था। जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश (नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी, नेफ़ा) में भारतीय सीमा पर आक्रमण कर दिया था, तब अनेक भारतीय सैनिकों ने लड़ते-लड़ते अपना बलिदान दिया था। इसी युद्ध को आधार बनाकर चेतन आनंद ने ‘हकीकत’ फ़िल्म बनाई थी। इस फ़िल्म में भारत-चीन युद्ध के यथार्थ को मार्मिकता के साथ दर्शाते हुए उसका परिचय जन सामान्य से करवाया गया था। इसी फ़िल्म के लिए प्रसिद्ध शायर कैफ़ी आज़मी ने ‘कर चले हम फ़िदा ‘नामक देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत यह मार्मिक गीत लिखा था।
प्रश्न 2. ‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया‘ इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है?
उत्तरः हिमालय को भारत का ताज माना जाता है। हिमालय के झुकने का मतलब है भारत का सिर झुकना यानी भारत की इज़्ज़त कम होना। हिमालय हमारे देश की आन, बान और शान का प्रतीक है।
प्रश्न 3. इस गीत में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है?
उत्तरः भारत देश में पारंपरिक तरीके से दुल्हन को लाल चुनरी पहनाई जाती है। कविता में कवि ने धरती को दुल्हन की संज्ञा दी है क्योंकि जिस प्रकार दुल्हन अपने सिर को लाल जोड़े से ढकती है, वैसे ही हिमालय भारत के सिर के समान है और देश की रक्षा करते हुए, शहीद हुए सैनिकों के खून से हिमालय की धरती का रंग सुर्ख लाल हो गया था, जो किसी नवविवाहिता (दुल्हन) के जोड़े का होता है। सैनिकों ने इस धरती को अपना रक्त देकर दुल्हन की तरह श्रृंगार किया है। कवि को लगता है कि शहीदों के खून से हिमालय की धरती का रंग लाल हो गया है, जो इस बात का सूचक है कि मातृभूमि एक दुल्हन की तरह सज गई है।
प्रश्न 3. कवि ने ‘साथियो‘ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है और क्यों?
उत्तरः कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग समस्त देशवासियों के लिए किया है, खासकर युवाओं के लिए। देश के लिए बलिदान देने वाले ये सैनिक देशवासियों से यह अपेक्षा करते हैं कि वे उनके बलिदान का मूल्य समझते हुए निरंतर देशहित में लगे रहें ताकि उनका बलिदान व्यर्थ न जाए।
प्रश्न 4. कवि ने इस कविता में किस काफ़िले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?
उत्तरः एक सैनिक यदि शहीद होता है तो उसके स्थान पर दूसरा सैनिक लड़ाई जारी रखने के लिए आ जाता है। इस तरह से कोई भी लड़ाई अपने सही मुकाम पर पहुँच पाती है। इस कविता में काफ़िला आगे बढ़ाने का मतलब है युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने वाले सैनिकों की कभी न खत्म होने वाली पंगत तैयार करना। काफ़िले शब्द का प्रयोग उन देशप्रेमियों के लिए किया गया है, जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान हँसते-हँसते दे देते हैं। कवि की अपेक्षा यह है कि ऐसे वीर सपूतों का जन्म बार-बार होगा और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों का उत्सर्ग कर देने वाले सैनिकों का काफ़िला यूँही सजता रहेगा। इसी आशा से कवि ने इस काफ़िले को आगे बढ़ाते रहने को कहा है।
प्रश्न 5. इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः युद्ध बहुत ही विनाशक होता है, इसलिए किसी भी देश को हमेशा युद्ध को टालने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन जब युद्ध ज़रूरी होता है तो उसके लिए हमेशा तैयार रहना भी अत्यंत ज़रूरी है। इससे दुश्मनों में भी डर बना रहता है और वे कुछ भी उल्टा-सीधा करने से पहले सौ बार सोचने को मजबूर हो जाते हैं। दुनिया का लगभग हर बड़ा देश अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए अरबों रुपये खर्च करता है ताकि उसकी सेना हमेशा किसी अनहोनी के लिए तैयार रहे। उत्तम हथियारों से लैस सेना तब तक कारगर नहीं होती, जब तक कि उसके सैनिकों में अदम्य साहस और जोश न हो। यह कविता उसी जोश को जगाए रखने का काम आसानी से कर सकती है। यह 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है। कवि ने इसके माध्यम से उन सैनिकों के हृदय की आवाज़ को शब्द दिए हैं, जिन्होंने देश-रक्षा के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी थी। उन सैनिकों ने देश का गौरव कम नहीं होने दिया। हिमालय का मस्तक, उसकी आन-बान-शान कम नहीं होने दी। लड़ते-लड़ते साँसें थमने पर, अत्यधिक ठंड से नब्ज़ तक जमने पर, जिन्होंने अपने बाँकपन (जवानी के जोश) को कम न होने दिया, वे सैनिक अपने साथी सैनिकों और देशवासियों से भी ऐसे ही समर्पण की आशा रखते हैं। देशवासियों को भी अपने सुखों और निजी स्वार्थों को छोड़कर देश की रक्षा के लिए सिर पर कफ़न बाँधकर तैयार हो जाना चाहिए। भारत माता सीता के समान पवित्र है। कोई भी रावण अर्थात् शत्रु उसके दामन को छू न सके। इसकी पवित्रता को खंडित न कर सके। देशवासियों को राम-लक्ष्मण के समान वीरता दिखानी होगी। भारतवर्ष की रक्षा करनी होगी।
कविता- आत्मत्राण
कवि – रवींद्रनाथ ठाकुर
प्रश्न 1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तरः कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। वह यह चाहता है कि वह हर मुसीबत का सामना खुद करे। भगवान उसे केवल इतनी शक्ति दें कि मुसीबत में वह घबरा न जाए। वह भगवान से केवल आत्मबल चाहता है और स्वयं मेहनत करना चाहता है। वह कामना करता है कि भले ही ईश्वर उसे दैनिक जीवन की विपदाओं को दूर करने में मदद न करे, परंतु वह अपने प्रभु से इतना अवश्य चाहता है कि वह इन विपदाओं से घबराए नहीं और इन पर विजय प्राप्त कर सके। वह अपने बल-पौरुष पर भरोसा करता है। वह प्रभु से अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करता है, प्रभु उसे इतना निर्भय बना दे कि वह जीवन-भार को आसानी के साथ वहन कर सके। कवि चाहता है कि प्रभु के प्रति उसकी आस्था अडिग बनी रहे और किसी भी परिस्थिति में वह उन पर संदेह न करे ।
प्रश्न 2. ‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं‘ कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तरः इस पंक्ति में कवि ने यह बताया है कि वह यह नहीं चाहता कि भगवान आकर उसकी मदद करें। वह भगवान को किसी भी काम के लिए परेशान नहीं करना चाहता अपितु स्वयं हर चीज़ का सामना करना चाहता है। कवि का तात्पर्य यह है कि वह ईश्वर से यह विनती नहीं करना चाहता कि वे उसे संकटों से बचाए रखें। वह तो मात्र यह चाहता है कि प्रभु उसे ऐसा आंतरिक बल दें कि वह किसी भी कठिन समय में विचलित न हो । प्रभु उसे सहनशीलता, धैर्य तथा बल अवश्य प्रदान करें, ताकि वह किसी भी कष्ट और संकट से उबर पाए, उसे सहन कर पाए । किसी भी परिस्थिति में उसका मन विचलित न हो। कठिन-से-कठिन समय में भी, ईश्वर के प्रति उसके विश्वास और श्रद्धा में कमी न आए ।
प्रश्न 3. ‘आत्मत्राण‘ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः ‘आत्मत्राण’ शीर्षक’ का अर्थ है- स्वयं की रक्षा अर्थात् अपने आप को किसी भी स्थिति में ऊपर उठाना। इस कविता में कवि ने अपने सब कार्य स्वयं करने की बात की है। भगवान से मदद के नाम पर वह केवल इतना चाहता है कि भगवान उसके मनोबल को बनाए रखें। दूसरे शब्दों में, अपनी सभी ज़िम्मेदारियाँ वह स्वयं ही निभाना चाहता है। इसलिए ‘आत्मत्राण’ शीर्षक इस कविता के लिए बिलकुल सही है।
प्रश्न 4. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
उत्तर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम प्रार्थना के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रयास करते हैं –
1. हम इच्छा पूर्ति के लिए जी-जान से परिश्रम करते हैं।
2. हम उसके लिए संघर्ष करते हैं।
3. हम अपनी शक्ति का परीक्षण करते हैं और सामर्थ्यानुसार उस दिशा में आगे कदम बढ़ाते हैं।
प्रश्न 5. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तरः अधिकतर प्रार्थनाओं में भगवान से कुछ-न-कुछ माँगा जाता है, उनसे अपने दुखों और कष्टों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। उनसे विपत्तियाँ न देने की प्रार्थना की जाती है और केवल सुख-ही-सुख माँगे जाते हैं। इसके अलावा भगवान के रूप और उसकी शक्तियों की प्रशंसा की जाती है। इस कविता में कवि ने भगवान से ऐसा कुछ भी नहीं माँगा है। साथ ही वे भगवान की बिना मतलब की तारीफ़ों के पुल भी नहीं बाँध रहे हैं। वे जीवन की सभी कठिनाइयों और समस्याओं को स्वयं स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। वे ईश्वर से केवल सहनशक्ति की अपेक्षा करते हैं। वे निर्भय होकर अपने साहस को बनाए रखना चाहते हैं और ईश्वर से इसी बात की प्रार्थना करते हैं।
प्रश्न 6. ‘आत्मत्राण‘ कविता में कवि की प्रार्थना से क्या संदेश मिलता है ?
उत्तरः ‘आत्मत्राण’ कविता के माध्यम से कवि मानव मात्र को संदेश देना चाहते हैं कि हमें ईश्वर से दुखों से छुटकारा पाने की बजाय उन दुखों को सहन करने की शक्ति माँगनी चाहिए । मनुष्य को कभी भी विषम परिस्थितियों को देखकर घबराना नहीं चाहिए, बल्कि अगर हानि भी उठानी पड़े तो मन में रोष नहीं करना चाहिए । कवि ईश्वर से संकट के समय भय-निवारण करने की शक्ति प्रदान करने को कहते हैं। कविता के माध्यम से कवि आशावादी दृष्टिकोण अपनाने का संदेश तो देते ही हैं, साथ ही यह भी सीख देते हैं कि मनुष्य को सुख के क्षणों में भी ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए, उसे याद करके उसके समक्ष विनय भाव प्रकट करना चाहिए । उससे निडरता, शक्ति और आस्था का वरदान लेना चाहिए। अगर दुख में कोई सहायक न मिले तो भी मनुष्य को अपना बल-पौरुष नहीं डगमगाने देना चाहिए तथा ऐसी स्थिति में भी प्रभु पर से विश्वास कम नहीं होना चाहिए ।
प्रेमचंद
प्रश्न 1. बड़े भाई की डॉट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? विचार प्रकट कीजिए-
उत्तरः छोटा भाई अभी अनुभवहीन था। वह अपना भला-बुरा नहीं समझ पाता था। यदि बड़े भाई साहब उसे डाँटते-फटकारते नहीं, तो जितना पढता था, उतना भी नहीं पढ़ पाता और अपना समय खेल-कूद में ही गँवा देता। उसे बड़े भाई की डाँट का डर था। इसी कारण उसे शिक्षा की अहमियत समझ में आई, विषयों की कठिनाइयों का पता चला, अनुशासन का महत्त्व समझ पाया और वह कक्षा में अव्वल आया ।
प्रश्न 2.बड़े भाई साहब पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है ? क्या आप उनसे सहमत हैं ?
उत्तरः बड़े भाई साहब ने समूची शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि आजकल के विद्यार्थियों को जो कुछ भी पढ़ाया जा रहा है, उससे उनके वास्तविक जीवन का कोई लेना-देना नहीं है। यह शिक्षा अंग्रेज़ी बोलने, लिखने, पढ़ने पर ज़ोर देती है। आए या न आए पर उस पर बल दिया जाता है। रटंत प्रणाली पर जोर दिया जाता है। अर्थ समझ में आए न आए पर रटकर बच्चा विषय में पास हो जाता है। अलजेबरा, ज्योमेट्री निरंतर अभ्यास के बाद भी गलत हो जाती है। इतिहास में बादशाहों के नाम याद रखने पड़ते हैं, यदि कुछ का कुछ लिख दिया तो सवाल का जवाब गलत कर दिया जाता है। छोटे-छोटे विषयों पर लंबे-चौड़े निबंध लिखने के लिए कहा जाता है। ऐसी शिक्षा जो लाभदायक कम और बोझ ज्यादा हो, उचित नहीं होती है। हम उनके विचार से सहमत हैं। छात्रों को वही ज्ञान दिया जाए जो व्यावहारिक और भविष्योपयोगी हो। बालकों की क्षमता एवं आयु का ध्यान रखकर छात्रों को पढ़ाया जाए ।
प्रश्न- 3- बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है ?
उत्तरः बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ किताबें पढ़ने से नहीं बल्कि ज़िन्दगी के अनुभवों से आती है। समझ और विवेक केवल अनुभवों से ही प्राप्त किए जा सकते हैं। अधिक पढ़ा-लिखा होने से व्यक्ति विद्वान तो बन सकता है लेकिन उसमें जीवन की समझ नहीं होती। कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी अनुभवी हो सकता है और सफल जीवन बिता सकता है। बड़े भाई साहब ने हेड मास्टर और अपने माता-पिता का उदाहरण देकर अनुभव का महत्त्व दर्शाया है। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को यह कहकर समझाया कि उनके माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे पर उन्हें जीवन की अधिक समझ थी। हेडमास्टर साहब का उदाहरण देते हुए कहा है कि घर का इंतजाम करने में हेडमास्टर साहब की डिग्री बेकार हो गई। खर्च पूरा न पड़ता था। लेकिन जब हेडमास्टर की बूढ़ी माँ ने घर का प्रबंध अपने हाथ में लिया जैसे घर में लक्ष्मी आ गई हो। अतः बड़े भाई साहब जीवन के इसी अनुभव को किताबी ज्ञान से अधिक महत्त्व देते हैं।
आशय स्पष्ट कीजिए:
प्रश्न- 4- इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं है, असल चीज़ है बुद्धि का विकास ।
उत्तरः बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को उपदेश देते हुए कहते हैं कि परीक्षा में पास हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात तो तब होती है जब बुद्धि का विकास होता है। यदि कोई व्यक्ति बहुत-सी परीक्षाएँ पास कर ले किंतु उसे अच्छे-बुरे में अंतर करना न आए तो उसकी पढ़ाई व्यर्थ है। पुस्तकों को पढ़कर उनके ज्ञान से अपनी बुद्धि का विकास करना ही असली शिक्षा है।
प्रश्न- 5- फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था ।
उत्तरः छोटा भाई खेल-कूद, सैर-सपाटे और मटरगश्ती का बड़ा प्रेमी था। उसका बड़ा भाई इन सब बातों के लिए उसे खूब डाँटता-डपटता था। उसे घुड़कियाँ देता था, तिरस्कार करता था। परंतु फिर भी वह खेल-कूद को नहीं छोड़ पाता था। वह खेलों पर जान छिड़कता था। जिस प्रकार विभिन्न संकटों में फँसकर भी मनुष्य मोह-माया में बँधा रहता है, उसी प्रकार लेखक डाँट-फटकार सहकर भी खेल-कूद के आकर्षण से बँधा रहता था।
प्रश्न- 6- बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने?
उत्तरः किसी भी मजबूत मकान के लिए एक मज़बूत नींव का होना आवश्यक होता है। यदि नींव कमज़ोर होगी तो उस पर बना मकान भी कमज़ोर ही होगा। नींव जितनी मजबूत होगी, उस पर बना मकान भी उतना ही मजबूत होगा। किसी भी मजबूत मकान के बनने में उसकी नींव का बहुत बड़ा योगदान होता है। यहाँ बड़े भाई साहब पर व्यंग्य किया गया है क्योंकि वह एक साल का काम दो साल में करते थे। कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। वह अपनी पढ़ाई की बुनियाद मज़बूत डालना चाहते थे।
डायरी का एक पन्ना
सीताराम सेकसरिया
प्रश्न 1. कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तरः 26 जनवरी, 1931 का दिन कलकत्तावासियों के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि सन् 1930 में गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। इस वर्ष उसकी पुनरावृत्ति थी, जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से ही की गई थीं। इसके लिए लोगों ने अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया था और उन्हें इस तरह से सजाया गया था कि ऐसा मालूम होता था, मानों स्वतंत्रता मिल गई हो।
प्रश्न 2. लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?
उत्तर-लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर बताना चाहते थे कि वे अपने को आज़ाद समझ कर आज़ादी मना रहे हैं। उनमें जोश और उत्साह है।
प्रश्न 3. पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों और मैदानों को क्यों घेर लिया था?
उत्तरः पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को इसलिए घेर लिया था ताकि लोग वहाँ एकत्रित न हो सकें। पुलिस नहीं चाहती थी कि लोग एकत्र होकर पार्कों तथा मैदानों में सभा करें तथा राष्ट्रीय ध्वज फहराएँ। पुलिस पूरी ताकत से गश्त लगा रही थी। प्रत्येक मोड़ पर गोरखे तथा सार्जेंट मोटर-गाड़ियों में तैनात थे। घुड़सवार पुलिस का भी प्रबंध था।
प्रश्न 4. ‘आज जो बात थी वह निराली थी’− किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लोगों की तैयारी और उनका जोश देखते ही बनता था। एक तरफ़ पुलिस की पूरी कोशिश थी कि स्थिति उनके काबू में रहे, तो दूसरी ओर लोगों का जुनून पुलिस की कोशिश के आगे भारी पड़ रहा था। हर पार्क तथा मैदान में भारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे। पूरा शहर झंडों से सजा था तथा कौंसिल ने मोनुमेंट के नीचे झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने का सरकार को खुला चैलेंज दिया हुआ था। जोश भरा माहौल बता रहा था कि वह दिन वाकई निराला था।
प्रश्न 5.सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?
उत्तर–सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। भारी पुलिस व्यवस्था के बाद भी जगह-जगह स्त्री जुलूस के लिए टोलियाँ बन गई थीं। मोनुमेंट पर भी स्त्रियों ने निडर होकर झंडा फहराया, अपनी गिरफ्तारियाँ करवाई तथा उनपर लाठियाँ बरसाईं। इसके बाद भी स्त्रियाँ लाल बाज़ार तक आगे बढ़ती गईं।
प्रश्न 6.जुलूस के लाल बाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?
उत्तर-जुलूस के लाल बाज़ार आने पर भीड़ बेकाबू हो गई। पुलिस डंडे बरसा रही थी, लोगों को लॉकअप में भेज रही थी। स्त्रियाँ भी अपनी गिरफ़्तारी दे रही थीं। दल के दल नारे लगा रहे थे। लोगों का जोश बढ़ता ही जा रहा था। लाठी चार्ज से लोग घायल हो गए थे। खून बह रहा था। चीख पुकार मची थी फिर भी उत्साह बना हुआ था।
प्रश्न 7. बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में कलकत्ता वासियों ने स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी ज़ोर-शोर से की थी। पुलिस की सख़्ती, लाठी चार्ज, गिरफ़्तारियाँ , इन सब के बाद भी लोगों में जोश बना रहा। लोग झंडे फहराते, वंदे मातरम् बोलते हुए, खून बहाते हुए भी जुलूस निकालने को तत्पर थे। जुलूस टूटता फिर बन जाता। कलकत्ता के इतिहास में इतने प्रचंड रूप में लोगों को पहले कभी नहीं देखा गया था।
तताँरा-वामीरो कथा
लीलाधर मंडलोई
प्रश्न 1. निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?
उत्तरः- निकोबारियों का विश्वास था कि पहले अंडमान-निकोबार एक ही द्वीप थे। इनके दो होने के पीछे तताँरा वामीरो की लोक कथा प्रचलित है। ये दोनों प्रेम करते थे। दोनों एक गाँव के नहीं थे । इसलिए रीति अनुसार विवाह नहीं हो सकता था। रूढ़ियों में बंधे होने के कारण वह कुछ कर भी नहीं सकता था । उसे अत्यधिक क्रोध आया और उसने क्रोध में अपनी तलवार धरती में गाड़ दी और उसे खींचते-खींचते बहुत दूर चला गया। इससे ज़मीन दो भागों में बँट गई – एक निकोबार और दूसरा अंडमान।
प्रश्न 2. वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तरः- वामीरो के मिलने के पश्चात् तताँरा हर समय वामीरो के ही ख़्याल में ही खोया रहता था। उसके लिए वामीरो के बिना एक पल भी गुज़ारना कठिन-सा हो गया था। वह शाम होने से पहले ही लपाती की उसी समुद्री चट्टान पर जा बैठता, जहाँ वह वामीरो के आने की प्रतीक्षा किया करता था।
प्रश्न 3. प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?
उत्तरः- प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए मेले, पशु-पर्व, कुश्ती, गीत संगीत आदि अनेक प्रकार के आयोजन किए जाते थे। जैसे पशु-पर्व में हृष्ट-पुष्ट पशुओं का प्रदर्शन किया जाता था तो पुरुषों को अपनी शक्ति प्रदर्शन करने के लिए पशुओं से भिड़ाया जाता था। इस तरह के आयोजनों में सभी गाँववाले भाग लेते थे और गीत-संगीत के साथ भोजन आदि की भी व्यवस्था की जाती थी।
प्रश्न 4. रुढियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः-रूढियाँ और बंधन समाज को अनुशासित करने के लिए बनते हैं परंतु जब यही बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। तभी हम समय के साथ आगे बढ़ पाएँगे। बंधनों में जकड़कर व्यक्ति और समाज का विकास, सुख-आनंद, अभिव्यक्ति आदि रुक जाती है। इस कहानी के संदर्भ में देखा जाए तो तताँरा-वामीरो का विवाह एक रूढ़ी के कारण नहीं हो सकता था जिसके कारण उन्हें जान देनी पड़ती है। इस तरह की रूढ़ियाँ भला करने की जगह नुकसान करती हैं। यदि हमें आगे बढ़ना है तो इन रूढ़ीवादी विचारधाराओं को तोड़ना ही होगा।
प्रश्न 5. निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।
उत्तरः-. इस पंक्ति का आशय यह है कि तताँरा अपने अपमान को सहन नहीं कर पाया। अपने अपमान को शांत करने के लिए उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर धरती में अपनी तलवार घोंप दी। जिसके परिणास्वरूप धरती दो टुकड़ों में बँट गई।
तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
प्रहलाद अग्रवाल
1. फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ‘ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?
उत्तर-‘रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन को आपत्ति थी क्योंकि सामान्यत: दिशाएँ चार होती हैं। वे चार दिशाएँ शब्द का प्रयोग करना चाहते थे लेकिन शैलेन्द्र तैयार नहीं हुए। वे कलाकार का दायित्व मानते थे, कि वह उपभोक्ता की रुचियों को सुधारने का करने का प्रयत्न करें। वे उथलेपन पर विश्वास नहीं करते थे।
2. लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
उत्तर-तीसरी कसम फ़िल्म फणीश्वर नाथ रेणु की पुस्तक मारे गए गुलफाम पर आधारित है। शैलेंद्र ने पात्रों के व्यक्तित्व, प्रसंग, घटनाओं में कहीं कोई परिवर्तन नहीं किया है। कहानी में दी गई छोटी-छोटी बारीकियाँ, छोटी-छोटी बातें फ़िल्म में पूरी तरह उतर कर आईं हैं। शैलेंद्र ने धन कमाने के लिए फ़िल्म नहीं बनाई थी। उनका उद्देश्य एक सुंदर कृति बनाना था। उन्होंने मूल कहानी को यथा रूप में प्रस्तुत किया है। उऩके योगदान से एक सुंदर फ़िल्म तीसरी कसम के रूप में हमारे सामने आई है। लेखक ने इसलिए कहा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।
3. लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक के अनुसार ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था। लेखक का यह कथन बिलकुल सही है क्योंकि इस फिल्म की कलात्मकता काबिल-ए-तारीफ़ है। शैलेन्द्र एक संवेदनशील तथा भाव-प्रवण कवि थे और उनकी संवेदनशीलता इस फ़िल्म में स्पष्ट रुप से मौजूद है। यह संवेदनशीलता किसी साधारण फ़िल्म निर्माता में नहीं होती है।
4 – उनका दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रूचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
उत्तर- जब संगीतकार जयकिशन ने गीत ‘प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल’ की एक पंक्ति ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ में आपत्ति जताई थी, और उनका कहना था कि दर्शकों को चार दिशाएँ तो समझ आ सकती है परन्तु दर्शक दस दिशाओं को समझने में परेशानी हो सकती हैं। लेकिन शैलेन्द्र इस पंक्ति को बदलने के लिए तैयार नहीं हुए। वे चाहते थे कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर किसी भी फिल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे।
5 – व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संकेत देती है।
उत्तर- शैलेन्द्र के गीतों में सिर्फ दुःख-दर्द नहीं होता था, उन दुखों से निपटने या उनका सामना करने का इशारा भी होता था। और वो सारी क्रिया-प्रणाली भी मौजूद रहती थी जिसका सहारा ले कर कोई भी व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुँच सकता है। उनका मानना था कि दुःख कभी भी इंसान को हरा नहीं सकता बल्कि हमेशा आगे बढ़ने का इशारा देता है।
अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले
निदा फ़ाजली
प्रश्न 1. प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-प्रकृति में आए असंतुलन का दुष्परिणाम बहुत ही भयंकर हुआ; जैसे-
1. विनाशकारी समुद्री तूफ़ान आने लगे।
2. अत्यधिक गरमी पड़ने लगी।
3. बेवक्त की बरसातें होने लगीं
4. जलज़ले, सैलाब आने लगे ।
5 नए-नए रोग उत्पन्न हो गए, जिससे पशु-पक्षी असमय मरने लगे।
प्रश्न 2. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-बढ़ती हुई आबादी ने पर्यावरण पर अत्यंत विपरीत प्रभाव डाला। ज्यों-ज्यों आबादी बढ़ी त्यों-त्यों मनुष्य की आवास और भोजन की जरूरत बढ़ती गई। इसके लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई ताकि लोगों के लिए घर बनाया जा सके। इसके अलावा सागर के किनारे नई बस्तियाँ बसाई गईं। इन दोनों ही कार्यों से पर्यावरण असंतुलित हुआ। इससे असमय वर्षा, बाढ़, चक्रवात, भूकंप, सूखा, अत्यधिक गरमी एवं आँधी-तूफ़ान के अलावा तरह-तरह के नए-नए रोग फैलने लगे। इस प्रकार बढ़ती आबादी ने पर्यावरण में जहर भर दिया।
प्रश्न 3. समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?
उत्तर-समुद्र के गुस्से की वजह थी-बिल्डरों का लालच एवं स्वार्थपरता। बिल्डरों ने लालच के कारण सागर के किनारे की भूमि पर बस्तियाँ बसाने के लिए ऊँची-ऊँची इमारतें बनानी शुरू कर दीं। इससे समुद्र का आकार घटता गया और वह सिमटता जा रहा था। मनुष्य के स्वार्थ एवं लालच से समुद्र को गुस्सा आ गया। उसने अपने सीने पर दौड़ती तीन जहाजों को बच्चों की गेंद की भाँति उठाकर फेंक दिया जिससे वे औंधे मुँह गिरकर टूट गए। ये जहाज़ पहले जैसे चलने योग्य न बन सके।
प्रश्न 4. निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।
उत्तर-इतिहास गवाह रहा है कि बड़े लोग प्रायः शांत स्वभाव वाले होते हैं। वे क्रोध से दूर ही रहते हैं। उनकी सहनशीलता भी अधिक होती है परंतु जब उन्हें क्रोध आता है तो यह क्रोध विनाशकारी होता है। यही स्थिति विशालाकार समुद्र की होती है जो पहले तो सहता जाता है परंतु क्रोधित होने पर भारी तबाही मचाता है।
पतझर में टूटी पत्तियाँ
रविन्द्र केलेकर
1.शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर. शुद्ध आदर्शों की तुलना सोने से और व्यवहारिकता की तुलना ताँबे से इसलिए की गई है क्योंकि शुद्ध आदर्श सोने के समान होते हैं, जो अपने लचीलेपन के कारण ज़्यादा चल नहीं पाते; लेकिन अगर इन्हीं शुद्ध आदर्शों में थोड़ा-सा व्यवहारिकता का ताँबा मिला दिया जाए तो उसकी चमक बढ़ जाती है और वह मजबूत भी बन जाता है।
2. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः-हमारे विचार से जीवन में ईमानदारी, सत्य, अहिंसा, भाईचारा, परोपकार, जैसे मूल्य शाश्वत है और वर्तमान समय में ये सभी मूल्य महत्त्वपूर्ण हैं। प्रत्येक राष्ट्र के वैभव और कल्याण के लिए महत्त्वपूर्ण है कि उसके देशवासियों में प्रेम और भाईचारे की भावना हो, वे अपने देश, अपने काम और अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह ईमानदार हो। एक अच्छे समाज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि उसके सभी लोगों में परोपकार, त्याग, एकता और भाईचारे की भावना हो।
3.पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना‘ का संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘अवसरवादिता‘ और ‘व्यवहारिकता‘ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तरः- ‘गिन्नी का सोना’ कहानी में इस बात पर बल दिया गया है कि आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। इसमें व्यवहारिकता का ताँबा मिलाकर उपयोगी बनाया जा सकता है। केवल व्यवहारवादी लोग गुणवान लोगों को भी पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। यदि समाज का हर व्यक्ति आदर्शों को छोड़कर आगे बढ़ें तो समाज विनाश की ओर जा सकता है। समाज की उन्नति सही मायने में वहीं मानी जा सकती है जहाँ नैतिकता का विकास, जीवन के मूल्यों का विकास हो।
झेन की देन
- लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड़ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर-जापान के लोग अमेरिका से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं और इस होड़ में उनका दिमाग सबसे तेज़ रफ़्तार से चलता है, इसलिए लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात कही है।
2. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि जापानी लोग अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने लगे हैं । एक महीने का काम एक दिन में पूरा करने की कोशिश करते हैं। उनके दिमाग की रफ़्तार भी तेज ही रहती है। इस भागदौड़ भरे जीवन में उनके पास अपने स्वास्थ्य के लिए भी समय नहीं होता और ना ही वे वर्तमान समय में जी पाते हैं। उनका दिमाग व शरीर कंप्यूटर की तरह बहुत ही अधिक तेजी से चलता है और इस कारण अंत में उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।
3. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी मैं जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पाठ में लेखक ने कहा है कि वर्तमान ही सत्य है और प्रत्येक व्यक्ति को उसी में जीना चाहिए। अक्सर हम या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते हैं। इस प्रकार हम वर्तमान को छोड़कर, भूतकाल या भविष्यकाल में जीते है; जबकि असल में ये दोनों ही काल मिथ्या है। जब हम भूतकाल के अपने सुखों व दुखों के बारे में सोचते हैं, तब भी हम दुखी होते है क्योंकि हम गुजरे हुए काल को ना ही बदल सकते हैं और ना ही दोबारा जी सकते हैं। भविष्य की रंगीन कल्पनाएँ भी हमें दुःख ही देती हैं, क्योंकि हम अपना वक्त सोचने में ज़ाया कर देते हैं और उन रंगीन सपनों को पाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर पाते।
4. हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उत्तर- जापान के लोगों के जीवन की गति बहुत अधिक बढ़ गई है |जीवन की भाग-दौड़, व्यस्तता तथा आगे निकलने की होड़ ने लोगों का चैन छीन लिया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अधिक पाने की होड़ में भाग रहा है। इससे तनाव व निराशा बढ़ रही है।
कारतूस
हबीब तनवीर
1. कर्जल कालिंज का खेमा जंगल में क्यों लगा हुआ था?
उत्तरः कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में वज़ीर अली पर नज़र रखने और उसे गिरफ़्तार करने के लिए लगा हुआ था। वज़ीर अली ने कंपनी के वकील का क़त्ल कर दिया था और वहाँ से भाग गया था। वह अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संपूर्ण भारत में बगावत की आग फैला रहा था।
2. वज़ीर अली के अफ़साने सुनकर कर्नल को रॉबिनहुड की याद क्यों आ जाती थी?
उत्तरः वज़ीर अली रॉबिनहुड की तरह साहसी, हिम्मतवाला और बहादुर था। वह भी रॉबिनहुड की तरह किसी को भी चकमा देकर भाग जाता था। वह अंग्रेज़ी सरकार की पकड़ में नहीं आ रहा था। कंपनी के वकील को उसने मार डाला था । उसकी बहादुरी के अफ़साने सुनकर ही कर्नल को रॉबिनहुड की याद आ जाती थी। वज़ीर अली अवध
से अंग्रेज़ों को उखाड़ फेंकने में लगभग कामयाब हो गया था।
3. सआदत अली को अवध के तख़्त पर बिठाने के पीछे कर्नल का क्या मक़सद था?
उत्तरः वज़ीर अली के पैदा होते ही सआदत अली के सारे सपने टूट गए। उसने वज़ीर अली को गद्दी से हटाने के लिए अंग्रेज़ों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। स्वयं अंग्रेज़ भी वज़ीर अली को गद्दी से हटाना चाहते थे क्योंकि
वज़ीर अली अंग्रेज़ों का कट्टर शत्रु था। दूसरी तरफ़ सआदत अली आराम से अंग्रेज़ों के हाथ की कठपुतली बन गया था। उसने अवध का नवाब बनते ही आधा अवध तथा दस लाख रुपये कंपनी को दे दिए। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से अवध पर कंपनी का आधिपत्य स्थापित करने के उद्देश्य से कर्नल ने उसे अवध के तख़्त पर बिठाया था।
4. लेफ़्टीनेंट को ऐसा क्यों लगा कि कंपनी के ख़िलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है?
उत्तरः कर्नल ने लेफ़्टीनेंट को बताया कि किस तरह से विभिन्न प्रांतों के नवाबों ने अफगानिस्तान के शासक को अंग्रेज़ों पर हमला करने के लिए निमंत्रण दिया था। इससे पता चला कि भारत के एक बड़े हिस्से में अंग्रेज़ों के खिलाफ़ भावना भड़की हुई थी। इसलिए लेफ़्टीनेंट को ऐसा लगा कि कंपनी के ख़िलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है।
5. वज़ीर अली एक जाँबाज़ सिपाही था, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वज़ीर अली को अंग्रेज़ों ने अवध के तख्ते से हटा दिया पर उसने हिम्मत नहीं हारी। वज़ीफे की रकम में मुश्किल डालने वाले कंपनी के वकील की भी हत्या कर दी। अंग्रेज़ों को महीनों दौड़ाता रहा परन्तु फिर भी हाथ नहीं आया। अंग्रेज़ों के खेमे में अकेले ही पहुँच गया,कारतूस भी ले आया और अपना सही नाम भी बता गया। इस तरह वह एक जाँबाज़ सिपाही था।
हरिहर काका (मिथिलेश्वर)
प्रश्न-1-हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यों लगने लगे?
उत्तर- हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के लगने लगे क्योंकि दोनों उनकी जायदाद के भूखे थे । महंत ने धर्म और ईमान की प्यारी-प्यारी बातें कर हरिहर को ठाकुरबारी के नाम अपनी पूरी संपत्ति लिख देने के लिए कहा । समझाने से काम नहीं बना तो हरिहर काका को बुरी तरह मार-पीटकर उनके अँगूठे के निशान ले लिए। उधर हरिहर काका के भाइयों ने खून के रिश्ते के नाम पर भाईचारा और सज्जनता दिखाकर उनकी जायदाद हड़पने की कोशिश की। काम नहीं बना तो अपने ही हाथों से उन्हें खूब मारा-पीटा और ज़मीन पर पटक दिया। इन दोनों घटनाओं से हरिहर काका का मोह भंग हो गया और उनके दिल को सदमा पहुँचा।
प्रश्न-2 अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं। वे जानते हैं कि जब तक उनकी ज़मीन-जायदाद उनके पास है, तब तक सभी उनका आदर करेंगे। ठाकुरबारी के महंत हरिहर काका को इसलिए समझाते हैं कि वे उनकी ज़मीन ठाकुरबारी के नाम करवाना चाहते हैं। उनके भाई उनका आदर-सत्कार ज़मीन के कारण करते हैं। हरिहर काका ऐसे कई लोगों को जानते हैं, जिन्होंने अपने जीते-जी अपनी ज़मीन किसी और के नाम लिख दी थी । बाद में उनका जीवन नरक बन गया। वे नहीं चाहते थे कि उनके साथ भी ऐसा हो ।
प्रश्न-3 हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले कौन थे? उन्होंने उनके साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:- हरिहर काका को जबरन उठानेवाले महंत के आदमी थे। वे रात के समय हथियारों से लैस होकर आते हैं और हरिहर काका को ठाकुरबारी उठा कर ले जाते हैं। वहाँ उनके साथ बड़ा ही दुर्व्यवहार किया जाता है। उन्हें समझाबुझाकर और न मानने पर डरा धमकाकर सादे कागजों पर अँगूठे का निशान ले लिए जाते हैं। उसके बाद उनके मुँह में कपड़ा ठूँसकर उन्हें अनाज के गोदाम में बंद कर दिया जाता है।
प्रश्न-4 हरिहर काका के मामले में गाँव वालों की क्या राय थी और उसके क्या कारण थे?
उत्तर:- हरिहर काका के मामले में गाँव के लोग दो पक्षों में बँट गए थे कुछ लोग मंहत की तरफ़ थे जो चाहते थे कि काका अपनी ज़मीन धर्म के नाम पर ठाकुरबारी को दे दें ताकि उन्हें सुख आराम मिले, मृत्यु के बाद मोक्ष, यश मिले। यह सोच उनके धार्मिक प्रवृत्ति और ठाकुरबारी से मिलनेवाले स्वादिष्ट प्रसाद के कारण थी लेकिन दूसरे पक्ष के लोग जो कि प्रगतिशील विचारों वाले थे उनका मानना था कि काका को वह ज़मीन ज़मीन परिवार वालों को दे देनी चाहिए। उनका कहना था इससे उनके परिवार का पेट भरेगा। मंदिर को ज़मीन देना अन्याय होगा। इस तरह दोनों पक्ष अपने-अपने हिसाब से सोच रहे थे परन्तु हरिहर काका के बारे में कोई नहीं सोच रहा था। इन बातों का एक और भी कारण यह था कि काका विधुर थे और उनके कोई संतान भी नहीं थी।
प्रश्न-5-समाज में रिश्तों की क्या अहमियत है? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए ।
उत्तर-समाज में रिश्तों की बहुत बड़ी तथा विशेष अहमियत है, क्योंकि संसार को चलाने के लिए रिश्ते-नातों का, संबंधों का बहुत महत्त्व है। रिश्तों के कारण ही बहुत-से पाप-अत्याचार, अनाचारों का शमन हो जाता है। वंश परंपराएँ चलती हैं तथा रिश्तों की डोर मज़बूत होती है। व्यक्ति बदनामी के कई कार्य करने से बच जाता है तथा सीख देने में रिश्तों की अहमियत बहुत बड़ी मदद करती है। व्यक्ति की पहचान रिश्तों से ही होती है। सुख-दुःख बाँटने में रिश्ते ही काम आते हैं। आज रिश्तों की अहमियत कम होती जा रही है। भौतिक सुखों की होड़ और दौड़, स्वार्थ-लिप्सा तथा धर्म की आड़ में फलने-फूलने वाली हिंसावृत्ति ने रिश्तों की अहमियत को औपचारिकता तथा आडंबर का जामा पहना दिया है। भाई अपने भाई के खून का प्यासा हो गया है। आज रिश्तों से ज़्यादा धन-दौलत को अहमियत दी जा रही है। हरिहर काका इसके जीवंत उदाहरण हैं। उनके भाई उनकी ज़मीन पाने के लिए इंसानियत की सारी हदें पार कर देते हैं। पंद्रह बीघे ज़मीन पाने के लिए वे काका की हत्या तक करने को तैयार हो जाते हैं। यह मानवता का दुखद अंत प्रतीत होता है।
प्रश्न-6-यदि आपके आस-पास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो, तो आप उसकी मदद किस प्रकार करेंगे ?
उत्तर-यदि हमारे घर के आस-पास कोई हरिहर काका जैसी हालत में होगा, तो हम उसकी हर संभव मदद करेंगे। पहले तो उसके परिवार वालों को समझाएँगे कि वे उस व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार न करें, उसे प्यार, सम्मान, अपनापन दें। फिर भी यदि वे न मानें, तो पड़ोस के अन्य गण-मान्य लोगों से अनुरोध करेंगे कि वे उनकी किसी प्रकार से भी सहायता करें। यदि पुलिस की मदद भी लेनी पड़ी, तो हम पीछे नहीं हटेंगे। हम कोशिश करेंगे कि मीडिया भी सहयोग करे और उस व्यक्ति को इंसाफ दिलवाए।
प्रश्न-7-हरिहर काका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो उनकी क्या स्थिति होती? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:- हरिहर काका की बात मीडिया तक पहुँच जाती तो जो दुखी और एकाकी जीवन वे बिता रहे थे वह उन्हें मीडिया के हस्तक्षेप से न बिताना पड़ता। वे अपने पर हुए अत्याचार लोगों को न केवल बताकर भयमुक्त हो जाते बल्कि उनके कारण कई और लोग भी जागृत हो जाते। साथ ही मिडिया वहाँ पहुँचकर सबकी पोल खोल देती, मंहत व भाईयों का पर्दाफाश हो जाता। अपहरण, धमकाने और जबरन अँगूठा लगवाने के अपराध में उन्हें जेल हो जाती। मीडिया उन्हें स्वतंत्र और भयमुक्त जीवन की उचित व्यवस्था भी करवा देती।
सपनों के-से दिन
(गुरदयाल सिंह)
प्रश्न 1 – नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
उत्तर- हर साल जब लेखक अगली कक्षा में प्रवेश करता तो उसे पुरानी पुस्तकें मिला करतीं थी। उसके स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी एक बहुत धनी लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे। हर साल अप्रैल में जब पढ़ाई का नया साल आरम्भ होता था तो शर्मा जी उस लड़के की एक साल पुरानी पुस्तकें लेखक के लिए ले आते थे। उसे नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आती थी जो वह कभी भी समझ नहीं सका लेकिन वह गंध उसे उदास कर देती थी। इसके पीछे कारण हो सकता है कि नई श्रेणी की पढ़ाई कठिन थी और मास्टरों से पड़ने वाली मार का भय उसके मन में गहरी जड़ें जमा चुका था, इसलिए नई कक्षा में जाने पर लेखक को खुशी नहीं होती थी। पाठ को अच्छी तरह समझ न आने पर मास्टरों से चमड़ी उधेड़ने वाले मुहावरों को प्रत्यक्ष होते हुए देखना भी उसे अंदर तक उदास कर देता था।
प्रश्न 2 – लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
उत्तर – बचपन में लेखक को स्कूल जाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था परन्तु जब मास्टर प्रीतमचंद मुँह में सीटी लेकर लेफ़्ट-राइट की आवाज़ निकालते हुए मार्च करवाया करते थे और सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते और ऐसे घमंड के साथ चलते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, बहुत महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ हों, जैसे किसी देश का फौज़ी जवान होता है । स्काउटिंग करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों। यह ‘शाबाश’ लेखक को दूसरे अध्यापकों से मिलने वाले ‘गुडों’ से भी ज़्यादा अच्छा लगता था। यही कारण था कि बाद में लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।
प्रश्न 3. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
उत्तर:- लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था परन्तु जब स्कूल में रंग-बिरगें झंडे लेकर, गले में रूमाल बाँधकर मास्टर प्रीतमचंद पढ़ाई के बजाए स्काउटिंग की परेड करवाते थे, तो लेखक को बहुत अच्छा लगता था। सब बच्चे ठक-ठक करते राइट टर्न, लेफ़्ट टर्न या अबाऊट टर्न करते और मास्टर जी उन्हें शाबाश कहते तो लेखक को पूरे साल में मिले ‘गुडों’ से भी ज़्यादा अच्छा लगता था। इसी कारण लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगने लगा।
प्रश्न 4 – लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर‘ बनने की कल्पना किया करता था?
उत्तर – जैसे-जैसे लेखक की छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वह दिन गिनने शुरू कर देता था। हर दिन के ख़त्म होते-होते उसका डर भी बढ़ने लगता था। अध्यापकों ने जो काम छुट्टियों में करने के लिए दिया होता था, उसको कैसे करना है और एक दिन में कितना काम करना है यह सोचना शुरू कर देता। जब लेखक ऐसा सोचना शुरू करता तब तक छुट्टियों का सिर्फ एक ही महीना बचा होता। एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते। फिर वह अपना डर भगाने के लिए सोचता कि दस क्या, पंद्रह सवाल भी आसानी से एक दिन में किए जा सकते हैं। जब ऐसा सोचने लगता तो ऐसा लगने लगता जैसे छुट्टियाँ कम होते-होते भाग रही हों। दिन बहुत छोटे लगने लगते थे। लेखक ओमा की तरह जो उदंड लड़का था उसी की तरह बनने की कोशिश करता क्योंकि वह छुट्टियों का काम करने के बजाय अध्यापकों की पिटाई अधिक ‘सस्ता सौदा’ समझता था और काम न किया होने के कारण लेखक भी उसी की तरह ‘बहादुर’ बनने की कल्पना करने लगता।
प्रश्न 5 – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में जिन युक्तियों को अपनाया गया है उसमें मारना-पीटना और कठोर दंड देना शामिल हैं। इन कारणों की वजह से बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। परन्तु वर्तमान में इस तरह मारना-पीटना और कठोर दंड देना बिलकुल मना है। आजकल के अध्यापकों को सिखाया जाता है कि बच्चों की भावनाओं को समझा जाए, उसने यदि कोई गलत काम किया है तो यह देखा जाए कि उसने ऐसा क्यों किया है। उसे उसकी गलतियों के लिए दंड न देकर, गलती का एहसास करवाया जाए। तभी बच्चे स्कूल जाने से डरेंगे नहीं बल्कि खुशी-खुशी स्कूल जाएँगे।
प्रश्न 5- प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए –
(क) खेल आपके लिए क्यों ज़रूरी है?
उत्तर – खेल जितना मनोरंजक होता है उससे कही अधिक सेहत के लिए आवश्यक होता है। कहा भी जाता है कि ‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है।’ बच्चों का तन जितना अधिक तंदुरुस्त होगा, उनका दिमाग उतना ही अधिक तेज़ होगा। खेल-कूद में बच्चों को नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी होता है जैसे- साथ-साथ खेल कर भाईचारे की भावना का विकास होता है, समूह में खेलने से सामाजिक भावना बढ़ती है और साथ-ही-साथ प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास होता है।
(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिनसे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
उत्तर – जितना खेल जीवन में ज़रूरी है, उतने ही ज़रूरी जीवन में बहुत से कार्य होते हैं जैसे-पढाई । यदि खेल स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, तो पढाई भी आपके जीवन में कामयाबी के लिए बहुत आवश्यक है। यदि हम अपने खेल के साथ-साथ अपने जीवन के अन्य कार्यों को भी उसी लगन के साथ पूरा करते जाएँ जिस लगन के साथ हम अपने खेल को खेलते हैं तो अभिभावकों को कभी भी खेल से कोई आपत्ति नहीं होगी।
टोपी शुक्ला (रही मासूम रज़ा)
प्रश्न 1 – टोपी ने इफ़्फ़न से दादी बदलने की बात क्यों कही?
उत्तर- टोपी की दादी का स्वभाव अच्छा न था। वह हमेशा टोपी को डाँटती फटकारती थीं व कभी भी उससे प्यार से बात न करती थीं। टोपी की दादी परंपराओं से बँधे होने के कारण कट्टर हिंदू थीं। वे टोपी को इफ्फ़न के घर जाने से रोकती थीं। दूसरी ओर इफ्फ़न की दादी बहुत नरम स्वभाव की थीं जो बच्चों पर क्रोध करना नहीं जानती थीं। वह टोपी से भी बहुत प्यार करती थी इसी स्नेह के कारण टोपी इफ्फ़न से अपनी दादी बदलने की बात करता है। उनकी बोली भी टोपी को अच्छी लगती थी।
प्रश्न 2- पूरे घर में इफ़्फ़न को अपनी दादी से ही विशेष स्नेह क्यों था?
उत्तर इफ़्फ़न को अपनी दादी से बहुत ज्यादा प्यार था। प्यार तो उसे अपने अब्बू, अम्मी, बड़ी बहन और छोटी बहन नुज़हत से भी था परन्तु दादी से वह सबसे ज्यादा प्यार किया करता था। अम्मी तो कभी-कभार इफ़्फ़न को डाँट देती थी और कभी-कभी तो मार भी दिया करती थी। बड़ी बहन भी अम्मी की ही तरह कभी-कभी डाँटती और मारती थी। अब्बू भी कभी-कभार घर को न्यायालय समझकर अपना फैसला सुनाने लगते थे। नुज़हत को जब भी मौका मिलता वह उसकी कापियों पर तस्वीरें बनाने लगती थी। बस एक दादी ही थी जिन्होंने कभी भी किसी बात पर उसका दिल नहीं दुखाया था। वह रात को उसे तरह-तरह की कहानियाँ भी सुनाया करती थी यही कारण था कि पूरे घर में इफ़्फ़न को अपनी दादी से ही विशेष स्नेह था।
प्रश्न 3- इफ़्फ़न की दादी के देहांत के बाद टोपी को उसका घर खाली-सा क्यों लगा?
उत्तर -इफ़्फ़न की दादी स्नेहमयी थीं। वह टोपी को बहुत दुलार करती थीं। टोपी को भी स्नेह व अपनत्व की जरूरत थी। टोपी जब भी इफ़्फ़न के घर जाता था, वह अधिकतर उसकी दादी के पास बैठने की कोशिश करता था क्योंकि उस घर में वही उसे सबसे अच्छी लगती थीं। दादी के देहांत के बाद टोपी के लिए वहाँ कोई न था। टोपी को वह घर खाली लगने लगा क्योंकि इफ़्फ़न के घर का केवल एक आकर्षण था जो टोपी के लिए खत्म हो चुका था। इसी कारण टोपी को इफ़्फ़न की दादी के देहांत के बाद उसका घर खाली खाली-सा लगने लगा।
प्रश्न 4- टोपी और इफ़्फ़न की दादी अलग-अलग मज़हब और जाति के थे पर एक अनजान अटूट रिश्ते से बँधे थे। इस कथा के आलोक में अपने विचार लिखिए।
उत्तर – टोपी हिन्दू धर्म से था और इफ़्फ़न की दादी मुस्लिम थी। परन्तु टोपी और दादी का रिश्ता इतना अधिक अटूट था कि टोपी को इफ़्फ़न के घर जाने के लिए मार भी पड़ी थी परन्तु टोपी दादी से मिलने, उनकी कहानियाँ सुनाने और उनकी मीठी पूरबी बोली सुनने रोज इफ़्फ़न के घर जाता था। दादी रोज उसे कुछ-न-कुछ खाने को देती पर टोपी कभी नहीं खाता था। उसे तो दादी का हर एक शब्द गुड़ की डली की तरह लगता था। टोपी और इफ़्फ़न की दादी अलग-अलग मजहब और जाति के थे पर एक अनजान अटूट रिश्ते से बँधे थे। दोनों एक दूसरे को खूब समझते थे।
प्रश्न 5- टोपी नौवीं कक्षा में दो बार फेल हो गया।
(क) टोपी की भावनात्मक परेशानियों को मद्देनजर रखते हुए शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक बदलाव सुझाइए।
उत्तर- बच्चे फेल होने पर भावनात्मक रूप से आहत होते हैं और उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। वे शर्म महसूस करते हैं। इसके लिए विद्यार्थी के पुस्तकीय ज्ञान को ही ना परखा जाए बल्कि उसके अनुभव व अन्य कार्य-कुशलता को भी देखकर उसे प्रोत्साहन देना चाहिए उपचारात्मक शिक्षा, वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली व वैकल्पिक शिक्षा के साथ शिक्षकों का सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार भी आवश्यक है।

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