i.एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:

  1. हमलोगों का परम धर्म क्या है?
    उत्तरः हमलोगों का परम धर्म कर्त्तव्य करना है।
  2. कर्त्तव्य करने का आरम्भ पहले कहाँ से शुरु होता है?
    उत्तरः कर्त्तव्य करने का आरम्भ पहले अपने घर से शुरु होता है।
  3. कर्त्तव्य किस पर निर्भर है?
    उत्तरः कर्त्तव्य न्याय पर निर्भर है।
  4. कर्त्तव्य करने से क्या बढ़ता है?
    उत्तरः कर्त्तव्य करने से चरित्र की शोभा बढती है।
  5. धर्म पालन करने में सबसे अधिक बाधा क्या है?
    उत्तरः धर्म पालन करने में सबसे अधिक बाधा चित की चंचलता और मन की निर्बलता है।
  6. मन ज्यादा देर तक दुविधा में पड़ा रहा तो क्या आ घेरेगी?
    उत्तरः मन ज्यादा देर तक दुविधा में पडा रहा तो स्वार्थपरकता आ घेरेगी।
  7. झूठ बोलने का परिणाम क्या होगा?
    उत्तरः झूठ बोलने का परिणाम दुःख भोगना पड़ेगा।
  8. किसे सबसे ऊँचा स्थान देना उचित है?
    उत्तरः सत्यता को सबसे ऊँचा स्थान देना उचित है।
  9. जो मनुष्य सत्य बोलता है, वह किससे दूर भागता है?
    उत्तरः जो मनुष्य सत्य बोलता है वो बाहरी आडंबर से दूर भागता है|
  10. किनसे सभी घृणा करते हैं?
    उत्तरः झूठ बोलने वालों से सभी घृणा करते हैं।

।। निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

  1. घर और समाज में मनुष्य का जीवन किन-किन के प्रति कर्त्तव्यों से भरा पडा है?
    उत्तरः प्रारंभ में कर्तव्य की शुरुआत घर से ही होती है क्योंकि माता-पिता की ओर माता -पिता का कर्तव्य बच्चों के ओर दिख पड़ता है। इसके अलावा पति-पत्नी, स्वामी-सेवक और स्त्री-पुरुष के परस्पर अनेक कर्तव्य होते है। घर के बाहर मित्रों, पड़ोसियों और अन्य समाज में रहनेवालों के प्रति भी हमारे कर्तव्य होते हैं। हमारे कर्तव्य घर के प्रति, घरवालों के प्रति और समाज में रहनेवाले लोगों के प्रति अगर हम न करे तो हम लोगों की दृष्टि से गिर जाते हैं।
  1. मन की शक्ति कैसी है?
    उत्तरः हमलोगों के मन में एक ऐसी शक्ति है जो हर बुरे कर्मों को करने से रोकती है और हर अच्छे कर्मों को करने के लिए हमें प्रेरित करती है।
  2. धर्म पालन करने के मार्ग में क्या-क्या अडचन आते हैं?
    उत्तरः धर्म पालन करने के मार्ग में सबसे बड़ा अडचन चित की चंचलता और मन की निर्बलता से आते हैं। इसके साथ-साथ आलस्य और स्वार्थपरता भी धर्म पालन करने में बाधा डालती है।
  3. अंग्रेजी-जहाज बीच समुद्र में डूबते समय पुरुषों ने कैसे अपना धर्म निभाया?
    उत्तरः एक समय की बात है कि अंग्रेजी-जहाज बीच समुद्र में था, उसमें एक छेद हो गया। उस में पानी भरना शुरु हो गया, उस जहाज में बहुत-सी स्त्रियाँ और पुरुष थे। पुरुषों ने बचाने का बहुत प्रयास किया, परन्तु जब कोई उपाय सफल नहीं हुआ तब पुरुषों ने सभी स्त्रियाँ को नाव पर चढा कर बिदा कर दिया। जितने पुरुष उस पोत में थे। वे जहाज के ऊपर चढकर ईश्वर को धन्यवाद दिया। लेकिन पुरुष अपना प्राण बचाने का प्रयास नहीं किया। धीरे- धीरे पोत में पानी भर गया और वह पानी में डूब गया। इस तरह से अंग्रेजी-जहाज बीच समुद्र में डूबते समय पुरुषों ने अपना धर्म निभाया।
  4. झूठ की उत्पत्ति और उसके कई रुपों के बारे में लिखिए।
    उत्तरः संसार में बहुत-से ऐसे भी नीच और कुत्सित लोग होते हैं जो झूठ बोलने में अपनी चतुराई समझते हैं सत्य को छिपाकर धोखा देने या झूठ बोलकर अपने को बचा लेने में ही अपना परम गौरव मानते हैं। ऐसे लोग समाज को नष्ट करके समाज में दुख और संताप फैलाते हैं। झूठ की उत्पत्ति पाप, कुटिलता, कायरता के कारण होती है। किसी बात को बढा- चढाकर बोलना किसी बात को छिपाना, भेद बदलना, दूसरों की बातों में हाँ-में-हाँ मिलाकर बातें करना, वचन देकर पूरा न करना, सत्य न बोलना। इन सब कारणों से झूठ की उत्पत्ति होती है।
  5. मनुष्य का परम धर्म क्या है? उसकी रक्षा कैसे करनी चाहिए?
    उत्तरः मनुष्य का परम धर्म है, सत्य बोलना। सत्य बोलने वालों को श्रेष्ठ माने, सत्य बोलने से ही समाज में हमारा सम्मान हो सकेगा और हम अपना जीवन आनन्द पूर्वक बिता सकेंगे। क्योंकि सच्चे को सभी चाहते हैं और झूठे से सभी घृणा करते हैं।
  6. कर्त्तव्य पालन और सत्यता के बीच घनिष्ठ संबंध है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
    उत्तरः जो मनुष्य अपना कर्त्तव्य ईमानदारी पूर्वक करता है और अपने वह कामों तथा वचनों में सत्यता रखता है। वह मनुष्य अपने कार्यों में सफलता पा सकता है। क्योंकि संसार कोई काम झूठ बोलने से ज्यादा दिन तक नहीं चल सकता है। यदि किसी के घर में सभी लोग झूठ बोलने लगेंगे तो उस घर में कोई काम ठीक से नहीं हो सकेगा और सब लोग दुख भोगेंगे। इस तरह से कर्त्तव्य पालन और सत्यता के बीच घनिष्ठ संबंध है।

III ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:

  1. जिधर देखो उधर ही कर्त्तव्य देख पडते हैं।
    प्रसंगः
    प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास द्वारा लिखित कर्त्तव्य और सत्यता पाठ से लिया गया है।
    संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास ने लोगों से कहा है।
    स्पष्टीकरणः मनुष्य का परम धर्म है अपना कर्त्तव्य करना। जो लोग अपना कर्त्तव्य नहीं करते हैं। वे लोग समाज के नजर से नीचे गिर जाते हैं। हर व्यक्ति का अपना-अपना कर्त्तव्य होता है। मनुष्य के कर्त्तव्यों का आरम्भ सबसे पहले अपने घर से शुरु होता है। सबसे पहले अपने घर में बच्चों का कर्त्तव्य है कि अपने माता-पिता का आज्ञाकारी बनें, उनका सही से आदर और सम्मान करें, उनके सपनों को साकार करने का प्रयास करें, उनकी सेवा करें तथा अपने घर में अगर छोटे भाई-बहन है तो उनके रहन-सहन, खान-पान और पढाई-लिखाई पर ध्यान रखें। माता-पिता का कर्त्तव्य बनता है कि सबसे पहले वे अपने घर में सब के साथ अच्छा बर्ताव रखे, अच्छा आचरण रखे। ताकी आपके अच्छे बर्ताव और अच्छे आचरण से बच्चे में सदगुण आ सके। उन्हें अपने बच्चों का सही से ख्याल रखना चाहिए, अच्छी शिक्षा देनी चाहिए, उन्हें नैतिक गुण सिखाना चाहिए, उन्हें समय पर उचित भोजन देना चाहिए, उन्हें अच्छे भविष्य के लिए तैयार कराना चाहिए। पति-पत्नी का भी कर्त्तव्य बनता है कि एक-दूसरे का ख्याल रखे। स्वामी-सेवक का भी एक-दूसरे के प्रति कर्त्तव्य बनता है कि स्वामी अपने सेवक के प्रति दयालु रहे। उनके सुख-दुख में सहायक बने रहे। सेवक का कर्त्तव्य है कि अपने स्वामी का ईमानदारी पूर्वक मन से सेवा करें। अपने दोस्त और पडोसियों के सुख-दुख में सहायता करें। इस तरह से जिधर देखो उधर ही कर्त्तव्य देख पडते हैं।
    विशेषताः परिवार और समाज के प्रति जो मेरा कर्त्तव्य बनता है, हमें उस कर्त्तव्य को ईमानदारी पूर्वक करना चाहिए।
  1. कर्त्तव्य करना न्याय पर निर्भर है।
    प्रसंगः
    प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास द्वारा लिखित कर्त्तव्य और सत्यता पाठ से लिया गया है।
    संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास ने लोगों से कहा है।
    स्पष्टीकरणः कर्त्तव्य का पूरा पालन करना मनुष्य का परम धर्म है। अपना न्यायपूर्वक कर्त्तव्य करने से मनुष्य के चरित्र की शोभा बढती है। इसलिए कहा गया है- कर्त्तव्य करना न्याय पर निर्भर है।
    विशेषताः न्यायपूर्वक कर्त्तव्य करने से ही मनुष्य के चरित्र की शोभा बढती है।
  2. इसलिए हमारा यह धर्म है कि हमारी आत्मा जो कहे, उसके अनुसार हम करें।
    प्रसंगः
    प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास द्वारा लिखित कर्त्तव्य और सत्यता पाठ से लिया गया है।
    संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास ने लोगों से कहा है।
    स्पष्टीकरणः लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है कि हर इनसान के आत्मा में एक ऐसी शक्ति होती है जो हर बुरे कर्मों को करने से रोकती है और हर अच्छे कर्मों को करने के लिए हमें प्रेरित करती है। लेकिन कभी-कभी कुछ परिस्थितियों से मजबूर होकर अपनी आत्मा की आवाज को नहीं सुनते हैं और कोई गलत काम कर देते हैं। बाद में उनको काफ़ी दुखो का सामना करना पडता है और पछताना पडता है। इसलिए हमारा यह धर्म है कि हमारी आत्मा जो कहे, उसके अनुसार हम काम करें।
    विशेषताः इसलिए हमारी आत्मा जो कहे, वही काम करें।
  3. इसी प्रकार जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्त्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं।
    प्रसंगः प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास द्वारा लिखित कर्त्तव्य और सत्यता पाठ से लिया गया है।
    संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास ने लोगों से कहा है।
    स्पष्टीकरणः लेखक ने इसलिए ऐसा कहा है- एक समय कि बात है कि फ्रांस देश के रहने वालों ने एक डूबते हुए जहाज पर से अपने प्राण तो बचाए, परंतु उस पोत पर जितनी भी स्त्रियाँ और बच्चे थे उन सभी को उसी पोत में छोड दिया। वे सभी उस समुद्र में डूब कर मर गए। इस नीच कर्म की सारे संसार में निंदा हुई। इसी प्रकार जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्त्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं।
    विशेषताः मनुष्य को अपनी रक्षा करने के साथ-साथ दूसरों की भी रक्षा करनी चाहिए।
  4. सत्य बोलने से ही समाज में हमारा सम्मान हो सकेगा और हम आनंदपूर्वक हमारा समय बिता सकेंगे।
    प्रसंगः प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास द्वारा लिखित कर्त्तव्य और सत्यता पाठ से लिया गया है।
    संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक- डॉ. श्याम सुंदर दास ने लोगों से कहा है।
    स्पष्टीकरणः हम लोगों का परम धर्म है सत्य बोलें और सत्य को श्रेष्ठ मानें। कभी झूठ न बोलें। चाहे उससे कितनी ही हानि क्यों न होती हो। क्योंकि सत्य बोलने से ही समाज में हमारा सम्मान हो सकेगा और हम आनंदपूर्वक हमारा जीवन बिता सकेंगे।
    विशेषताः सत्य बोलने से ही समाज में हमारा सम्मान हो सकेगा।

IV. वाक्य शुद्ध कीजिए:

  1. मन में ऐसा शक्ति है। उत्तरः मन में ऐसी शक्ति है।
  2. तुम तुम्हारे धर्म का पालन करो। उत्तरः तुम अपने धर्म का पालन करो।
  3. उसे दिखावा नहीं रुचती है। उत्तरः उसे दिखावा नहीं रुचता है।
  4. लोगों ने झूठी चाटुकारी करके बडे-बडे नौकरियाँ पा ली। उत्तरः लोगों ने झूठी चाटुकारी करके बड़ी-बड़ी नौकरियाँ पा लीं ।
  5. मनुष्य के जीवन कर्त्तव्य से भरा पड़ा है। उत्तरः मनुष्य का जीवन कर्त्तव्य से भरा पड़ा है।

V. कोष्ठक में दिए गए उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिए: (सम्मान, घृणा, सत्य, कर्त्तव्य, प्रवृत्ति)

  1. सच्चाई की ओर हमारी प्रवृति झुकती है।
  2. मनुष्य का परम धर्म सत्य बोलना है।
  3. स्वार्थी लोग अपने कर्त्तव्य पर ध्यान नहीं देते।
  4. कुत्सित लोगों से सभी घृणा करते हैं।
  5. सत्य बोलने से हमारा सम्मान होगा।

VI. निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिए:

  1. झूठे से सभी घृणा करते हैं।(भविष्यत काल में बदलिए)
    उत्तरः झूठे से सभी घृणा करेंगे।
  2. वह मेरी किताब की चोरी करता था। (वर्तमान काल में बदलिए)
    उत्तरः वह मेरी किताब की चोरी करता है।
  3. हमारा जीवन सदा अनेक कार्यों में व्यस्त रहता है। (भूतकाल में बदलिए)
    उत्तरः हमारा जीवन सदा अनेक कार्यों में व्यस्त रहता था।

X) निम्नलिखित शब्दों के साथ उपसर्ग जोडकर नए शब्दों का निर्माण कीजिए:

शब्द उपसर्ग मूल शब्द नए शब्द
1.) चरित्र – कु + चरित्र = कुचरित्र
2.) स्वार्थ – नि: + स्वार्थ= निःस्वार्थ
3.) धर्म – अ + धर्म= अधर्म
4.) मान – अप + मान = अपमान
5.) सत्य – अ + सत्य = असत्य
6.) योग्य- सु + योग्य = सुयोग्य


XI) निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय अलग कर लिखिए:
शब्द मूल शब्द प्रत्यय
1) सत्यता सत्य + ता
2)अस्थिरता अस्थिर + ता
3)मनुष्यता – मनुष्य + ता
4) कायरता कायर + ता


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