गंगा मैया से साक्षात्कार लेखक – डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी


I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:

  1. लेखक ने किनसे साक्षात्कार लिया है?
    उत्तर: लेखक ने गंगा मैया से साक्षात्कार लिया है।
  2. लेखक मकर संक्रांति के दिन कहाँ थे?
    उत्तर: लेखक मकर संक्रांति के दिन इलाहाबाद में थे।
  3. माँ कहाँ विराज रही थी?
    उत्तर: माँ मंदिर में विराज रही थी।
  4. माँ के चेहरे पर क्या थी?
    उत्तर: माँ के चेहरे पर उदासी थी।
  5. किसका संकट चर्चा का विषय बना हुआ है?
    उत्तरः चरित्र का संकट चर्चा का विषय बना हुआ है।
  6. गंगा मैया ने सत्य क्या कहा है?
    उत्तर: गंगा मैया ने सत्य को निर्भय कहा है।
  7. किसका व्यापारी करण हो रहा है?
    उत्तरः धर्म का व्यापारी करण हो रहा है।
  8. असली झगडा किसके बारे में है?
    उत्तरः असली झगडा कुर्सी के बारे में है।
  9. मनुष्य के कुकर्मों पर कौन हँसने लगे हैं?
    उत्तर: मनुष्य के कुकर्मों पर पशु-पक्षी हँसने लगे हैं।
  10. गंगा मैया ने किसे सर्वशक्तिमान कहा है?
    उत्तर: गंगा मैया ने प्रकृति को सर्वशक्तिमान कहा है।
  11. पुनः उत्थान की किरणें कब फूटती है?
    उत्तर: जब पतन की पराकाष्ठा हो जाती है। तब पुन: उत्थान की किरणें फूटती है।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

  1. प्रदूषण के संबंध में गंगा मैया ने क्या कहा है?
    उत्तर: प्रदूषण के संबंध में गंगा मैया कहती हैं कि पूरे देश का वातावरण ही जब प्रदूषित हो गया है तब मैं कैसे बच सकती हूँ। लोगों का मन दूषित हो गया है। स्वार्थी लोगों की संख्या बढ़ रही है। चरित का संकट, चर्चा का विषय बना हुआ है। अब चरित्र का स्थान शब्दकोशों में है। उसका नाम शेष है, उपदेशकों के प्रयोग में भी आ रहा है। मास्टर लोग भी छोटी कक्षाओं में विद्यार्थियों को पढ़ाते समय कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग करते हैं। सेवा करने से चरित बनता है। लेकिन अब तो सब मेवा बटोरने में लगे हुए हैं। लेकिन अब सब पैसों के लालच में पडकर अपना सारा कचरा मुझमें ही डालते हैं, इसलिए प्रदूषण बढ़ गया है। जो लोग कहते हैं कि गंगा मैया में वह सकती है कि प्रदूषण अपने आप समाप्त हो जाती है। वे उल्लू के आस्थावान (पठे) शिष्य हैं।
  2. समाज में कौन-कौन सी समस्याएँ बढ़ रही है?
    उत्तरः समाज में बहुत तरह की समस्याएँ दिनों-दिन बढ़ रही है। अब लोगों में चरित्र नाम का चीज़ नहीं रह गया है। चरित्र का अस्तित्व ही मिट गया है। देश में महंगाई, रिश्वतखोरी और पाशविकता बढ़ती चली जा रही है। धर्म का भी व्यापारी करण हो रहा है। लोग अपने कुर्सी को बचाने के लिए सभी तरह के अधर्म और कुकर्म करने पर उतारू रहते हैं। इस तरह से हमारे देश में समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
  3. गंगा मैया का कुर्सी से क्या अभिप्राय है?
    उत्तर: गंगा मैया ने लेखक को कुर्सी के बारे में बताया है कि बाजार की कुर्सियाँ नहीं। मंत्री पद की कुर्सी। जिस किसी को एक बार भी इस कुर्सी का वैभव, धन, सम्मान, कीर्ति आदि का स्वाद लग जाए और एक बार जबान पर चढ़ जाए, तो फिर कुछ अच्छा नहीं लगता है। अगर ये कुर्सी एक बार भी छिन जाए तो व्यक्ति ऐसे भटकता है, जैसे मजनू लैला के पीछे भटकता था।

।।।. संदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:

  1. ‘वत्स, देश का वातावरण ही जब प्रदूषित हो गया तब मैं कैसे बच सकती थी।’
    प्रसंग:
    प्रस्तुत वाक्य को लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित गंगा मैया से साक्षात्कार पाठ से लिया गया है।
    संदर्भ: प्रस्तुत वाक्य को गंगा मैया लेखक से कहती है।
    स्पष्टीकरण: जब लेखक गंगा मैया से पूछा- माँ ! मैंने सुना है कि आप में भी प्रदूषण प्रवेश कर रहा है। आप में तो वह शक्ति है कि प्रदूषण अपने आप समाप्त हो जाती है। तब गंगा मैया ने स्नेह भाव से लेखक को उत्तर दिया-वत्स देस का ही वातावरण प्रदूषित हो गया है। तब मैं कैसे बच सकती हूँ। लोगों का मन दूषित हो गया है। जो वे कहते हैं वे उल्लू नहीं है। वे उल्लू के पट्टे भी है। सभी लोग अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे को उल्लू बनाने में लगे हुए हैं। लोग अपने स्वार्थ के लिए इतना प्रदूषण फैला रहा है कि कहना मुश्किल है।
    विशेषताः इस वाक्य में प्रदूषण के बारे में कहा गया है।
  2. ‘बेटा, शब्दकोशों में उसका नाम शेष उपदेशकों के प्रयोग में भी आ रहा है।’
    प्रसंग
    : प्रस्तुत वाक्य को लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित गंगा मैया से साक्षात्कार पाठ से लिया गया है।
    संदर्भ: प्रस्तुत वाक्य को गंगा मैया लेखक से कहती है।
    स्पष्टीकरणः चरित का संकट, चर्चा का विषय बना हुआ है। अब चरित्र का स्थान शब्दकोशों में है। उसका नाम शेष है, उपदेशकों के प्रयोग में भी आ रहा है। मास्टर लोग भी छोटी कक्षाओं में विद्यार्थियों को पढ़ाते समय कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग करते हैं।
    विशेषताः चरित्र के महत्व को बताया गया है।
  3. ‘सेवा ही परमो धर्म के स्थान पर लोग मेवा ही परमो धर्म कहने लगे हैं।’
    प्रसंग:
    प्रस्तुत वाक्य को लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित गंगा मैया से साक्षात्कार पाठ से लिया गया है।
    संदर्भ: प्रस्तुत वाक्य को गंगा मैया लेखक से कहती है।
    स्पष्टीकरणः सेवा करने से चरित बनता है। सेवा रानी को मारकर न जाने कहाँ भगा दिया। अब तो सब मेवा बटोरने में लगे हुए हैं। सेवा ही परमो धर्म के स्थान पर लोग मेवा (रुपया) ही परमो धर्म कहने लगे हैं।
    विशेषताः अब लोग बिना सेवा के रुपए कमाना चाहते हैं।
  4. ‘एक बार जब जाबान पे चढ़ जाए तो फिर कुछ अच्छा नहीं लगता।’
    प्रसंग:
    प्रस्तुत वाक्य को लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित गंगा मैया से साक्षात्कार पाठ से लिया गया है।
    संदर्भ: प्रस्तुत वाक्य को गंगा मैया लेखक से कहती है।
    स्पष्टीकरण: गंगा मैया ने लेखक से कहा कि असली झगडा कुर्सी के बारे में है। इसके लिए झगड़ा होता रहता है। तब लेखक कहते हैं कि बाजार में खूब कुर्सियां उपलब्ध हैं सस्ती और महंगी से महंगी कुर्सियां बाजार में उपलब्ध है। तब गंगा मैया ने लेखक से कहा-मैं मंत्री पद की कुर्सी के बारे में कह रही हूँ। जिस किसी को एक बार भी इस कुर्सी कावैभव, धन, सम्मान, कीर्ति आदि का स्वाद लग जाए और एक बार जबान पर चढ़ जाए, तो फिर कुछ अच्छा नहीं लगता है। अगर ये कुर्सी एक बार भी छिन जाए तो व्यक्ति ऐसे भटकता है, जैसे मजनू लैला के पीछे भटकता था। विशेषताः इसमें सत्ता के सुख चैन के बारे में बताया गया है।
  5. ‘पतन की जब पराकाष्ठा हो जाती है तभी पुनः उत्थान की किरणें फूटती है।’
    प्रसंग:
    प्रस्तुत वाक्य को लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित गंगा मैया से साक्षात्कार पाठ से लिया गया है।
    संदर्भ: प्रस्तुत वाक्य को गंगा मैया लेखक से कहती है।
    स्पष्टीकरण: लेखक अंतिम प्रश्न पूछा-माँ भविष्य में आपकी क्या संभावनाएँ हैं? इसके उत्तर में गंगा मैया कहती है बेटा! प्रकृति सर्वशक्तिमान है। प्रकृति में कैसे संतुलन बनाकर रखना है उनको पता है। जब पाप अंतिम सीमा पार करेगी तब आशा की नई किरणें जरूर फूटेगी और इन पापों का अंत होगा। ऐसा पहले भी हुआ था और कल भी होने वाला है। जब पाप की पराकाष्ठा हो जाती है तभी पुनः उत्थान की किरणें फूटती है।
    विशेषता: जब पाप की सीमा चरम सीमा पर पहुँच जाती है, तब मनुष्य का अंत होना भी निश्चित हो जाता है।

IV. वाक्य शुद्ध कीजिए:

  1. मैंने जाकर माँ की चरण छुए।
    उत्तर: मैने जाकर माँ के चरण छुआ।
  2. वह एक दिन मेरा पास आया था।
    उत्तरः वह एक दिन मेरे पास आया था।
  3. उसे किसी की डर नहीं है।
    उत्तर: उसे किसी का डर नहीं है।
  4. पाशविकता बढ़ता चला जा रहा है।
    उत्तरः पाशविकता बढ़ती चली जा रही है।
  5. मैंने कभी भेदभाव नहीं की ।
    उत्तर: मैंने कभी भेदभाव नहीं किया।

V. कोष्ठक में दिए गए उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिएः
(उदासी, सेवा, कुर्सियाँ, कावेरी)

  1. सेवा करने से चरित्र बनता है।
  2. चेहरे पर उदासी थी।
  3. उस दिन दक्षिण की कावेरी बहिन मिली थी।
  4. कुर्सियाँ तो बाजार में खूब उपलब्ध है।

VI. निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिएः

  1. असली झगडा कुर्सी का है। (भूतकाल में बदलिए)
    उत्तर:असली झगडा कुर्सी का था।
  2. सेवा करने से चरित्र बनता था।(वर्तमान काल में बदलिए)
    उत्तर: सेवा करने से चरित्र बनता है।
  3. दल से दल लडता है।(भविष्यत काल में बदलिए)
    उत्तर: दल से दल लड़ेगा।

VII) अन्य लिंग रुप लिखिए:
1) सचिव – सचिवा
(2) वत्स-वत्सा
(3) शिष्य-शिष्या
(4) उपदेशक- उपदेशिका
(5) राज्यपाल-महिला राज्यपाल


viii) निम्नलिखित शब्दों के साथ उपसर्ग जोडकर नए शब्दों का निर्माण कीजिए:
शब्द उपसर्ग मूल शब्द नए शब्द
1.) मान -अप + मान = अपमान
2.) दूषण -प्र + दूषण = प्रदूषण
3.) भय- अ + भय = अभय
4.) पुत्र -कु + पुत्र = कुपुत्र



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