i.एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
- संस्कृत के महापंडित कौन है?
उत्तरः संस्कृत के महापंडित श्रीधर है। - संस्कृत के महाकवि कौन है?
उत्तरः संस्कृत के महाकवि भारवि है। - भारवि की माँ का नाम क्या है?
उत्तरः भारवि की माँ का नाम सुशीला है। - सुशीला किसके लिए बेचैन है?
उत्तरः सुशीला अपने बेटे भारवि के लिए बेचैन है। - कवि किस पर शासन करता है? उत्तरः कवि समय पर शासन करता है।
- शास्त्रार्थ के नियमों में किसके हृदय को नहीं बाँधा जा सकता है?
उत्तरः शास्त्रार्थ के नियमों में माता के हृदय को नहीं बाँधा जा सकता है। - पुत्र को कौन निर्वासित कर सकता है?
उत्तरः पुत्र को पिता निर्वासित कर सकता है। - पुत्र को कब निर्वासित किया जा सकता है?
उत्तरः जब पुत्र अन्याय का आचरण करें और धर्म के प्रतिकूल चले, तब निर्वासित किया जा सकता है। - शास्त्रार्थों में पंडित को किसने पराजित किया?
उत्तरः शास्त्रार्थों मे पंडित को भारवि ने पराजित किया। - भारवि में किस कारण अहंकार बढ़ता जा रहा था?
उत्तरः पंडितों के हार के कारण भारवि में अहंकार बढ़ता जा रहा था। - पिता क्या सहन नहीं कर सकता?
उत्तरः पिता पुत्र का घमंड सहन नहीं कर सकता। - पिता ने भारवि की किन शब्दों में सराहना की?
उत्तरः पिता ने भारवि से कहा- तुम महामूर्ख, दम्भी और अज्ञानी है। - पंडित किस प्रकार भारवी का परिहास करने लगे?
उत्तरः सभी पंडित भारवी के शब्द में बोलकर परिहास करने लगे। - ग्लानी से भरे हुए भारवि को जाने से क्यों नहीं रोका गया?
उत्तरः क्योंकि अनुशासन की मर्यादा का उल्लंघन होता। - अनुशासन की मर्यादा पर क्या किया जा सकता है?
उत्तरः अनुशासन की मर्यादा पर बलिदान किया जा सकता है। - श्रीधर पंडित का पुत्र क्या नहीं हो सकता?
उत्तरः श्रीधर पंडित का पुत्र पतित नहीं हो सकता। - श्रीधर पंडित के घर की सेविका का नाम लिखिए।
उत्तरः श्रीधर पंडित के घर की सेविका का नाम आभा था। - सुशीला किस को खोजकर लाने के लिए कहती है?
उत्तरः सुशीला अपने पुत्र भारवि को खोजकर लाने के लिए कहती है।प्रेम के बिना किसका का मूल्य नहीं है?
उत्तरः प्रेम के बिना अनुशासन का मूल्य नहीं है। - श्रीधर पंडित भारवि को खोजने के लिए किसका सहारा लेना चाहते थे?
उत्तरः श्रीधर पंडित भारवि को खोजकर लाने के लिए राज्यकीय सहायता की सहारा लेना चाहते थे। - शास्त्रार्थ के लिए जाते समय भारवि ने किस रंग के कपड़े पहने हुए थे?
उत्तरः शास्त्रार्थ के लिए जाते समय भारवि ने नीले और पीले रंग के कपड़े पहने हुए थे। - भारवि से मिलने आई स्त्री का नाम लिखिए।
उत्तरः भारवि से मिलने आई स्त्री का नाम भारती था। - वसंत ऋतु में किसके स्वर से सभी परिचित हैं?
उत्तरः वसंत ऋतु में कोकिल के स्वर से सभी परिचित हैं। - ब्राह्म ज्ञान किसकी वीणा पर नृत्य करने के समान था?
उत्तरः ब्रह्म ज्ञान सरस्वती की वीणा पर नृत्य करने के समान था। - भारती ने भारवि को कहाँ देखा?
उत्तरः भारती नें भारवि को मालिनी तट पर देखा। - भारती नें जब भारवि को देखा तो उनकी स्थिति कैसी थी?
उत्तरः भारती ने जब भारवि को देखा तो वह ध्यानमग्न स्थिति में था। - बीज से दूर रहने पर भी फूल क्या नहीं होता?
उत्तरः बीज से दूर रहने पर भी फूल मलिन नहीं होता है। - भारवि के पिता को किसके पंडित्य को देखकर प्रसन्नता होती है?
उत्तरः भारवि के पिता को भारवि के पंडित्य को देखकर प्रसन्नता होती है। - अहंकार किस में बाधक हैं?
उत्तरः अहंकार उन्नति में बाधक हैं। - पिता के क्रोध में किसके प्रति मंगलकामना छिपी है?
उत्तरः पिता के क्रोध में पुत्र के प्रति मंगल की कामना छिपी है। - तलवार का प्रमाण किसका प्रमाण है?
उत्तरः तलवार का प्रमाण निर्बलों का प्रमाण है। - जीवन से क्या उत्पन्न होती है?
उत्तरः जीवन से गलानी (दुःख) उत्पन्न होती है। - ब्रह्म का निवास कहाँ होता है?
उत्तरः ब्राह्म का निवास मस्तिष्क में होता है। - भारवि के अनुसार क्या जघन्य पाप है?
उत्तरः भारवि के अनुसार आत्महत्या जघन्य पाप है। - भारवि को अपमान किसके सम्मान का खटक रहा था?
उत्तरः भारवि को अपमान शूल (काँटा) के समान खटक रहा था। - भारवि ने प्रतिशोध की आग में क्या करना चाहा?
उत्तरः भारवी ने प्रतिशोध की आग में पिता की हत्या करना चाहा। - पितृ-हत्या का दंड क्या नहीं है?
उत्तरः पितृ-हत्या का दंड पुत्र हत्या नहीं है। - भारवि के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा अपराध क्या है?
उत्तरः भारवी के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा अपराध चिंता और पाप में घूलते रहना अपराध है। - प्रतिशोध एकांकी के एकांकीकार का नाम लिखिए।
उत्तरः प्रतिशोध एकांकी के एकांकीकार का नाम- डॉ राम कुमार वर्मा है। - भारवि किस महाकाव्य की रचना कर महाकवि बने?
उत्तरः भारवि की किरातार्जुनीयम महाकाव्य की रचना करके महाकवि बने।
।।. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
- भारवि से संबंधित माता पिता के बीच होने वाले प्रारंभिक संवाद का सार लिखिए।
उत्तरः भारवि से संबंधित श्रीधर अपने पत्नी सुशीला से बातें करते हुए कह रहे हैं सुशीला मैं आज तुम्हें एक बात बताने जा रहा हूँ। भारवि आज संसार का श्रेष्ठ महाकवि बन गया है। दूर-दूर के देशों में उसकी समानता करने का किसी में साहस नहीं है। वह शास्त्रार्थ में बड़े से बड़े पंडितों को पराजित कर चुका है। उसका पांडित्य देखकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता होती है। किंतु भारवि के मन में धीरे-धीरे अहंकार बढ़ता जा रहा था। इसलिए मैं उसे भरी सभा में मूर्ख दम्भी और अज्ञानी कहा, ताकि इसे उसका अहंकार दूर हो जाए। प्रशंसा तो सभी करते हैं, किंतु अधिकारी से निंदा भी होनी चाहिए। मैं नहीं चाहता हूँ कि अहंकार के कारण मेरे पुत्र की उन्नति रुक जाए। इस क्रोध में पुत्र के प्रति मंगलकामना छिपी है। मैं चाहता हूँ कि मेरा पुत्र और भी विद्वान और यशस्वी बने। तब उनकी पत्नी सुशीला कहती है-आप कितने बड़ा महान हैं। - शास्त्रार्थ में पंडितों को हराते देख पिता ने भारवि के बारे में क्या सोचा?
उत्तरः शास्त्रार्थ में पंडितों को हराते देख पिता ने भारवि के बारे में सोचा कि पंडितों की हार से उसका अहंकार बढ़ता जा रहा है। उसे अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया है। उसका गर्व सीमा का अतिक्रमण कर रहा है। यह मुझे सहन नहीं हो सकता है। इस तरह से इसमें अहंकार बढ़ता जाएगा, तो मेरा पुत्र आगे नहीं बढ़ सकता है। क्योंकि अहंकार उन्नति में बाधक होता है। इसलिए पिता ने भरी सभा में पंडितों के सामने भारवि का पड़तारना किया, जिससे उसका अहंकार मिट जाए और सही मार्ग पर आ जाए। - सुशीला के अनुरोध पर श्रीधर ने भारवि को कहाँ-कहाँ और कैसे तलाश करने का वचन दिया?
उत्तरः जब पुत्र भारवि वापस नहीं लौटा तो माता सुशीला बहुत चिंतित हो गई। बार-बार अपने पुत्र की खोज के लिए पति श्रीधर से आग्रह करने लगी। श्रीधर हिम्मत करते हुए कहते हैं कि पुत्र तो है ही, किंतु वह संसार का जनक भी है। वह अपनी कल्पना से न जाने कितने संसारों का निर्माण कर सकता है। सुशीला के अनुरोध पर श्रीधर भारवि को पूरे जनपद में खोजने का वचन दिया और कहा- उसे खोजने के लिए, उसे राजकीय सहायता दिया जाएगा। - भारती और सुशीला के वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः भारती सुशीला के घर आती है और कहती है कि मैं महाकवि भारवि से दर्शन करना चाहती हूँ। तब सुशीला भारती से कहती हैं कि मेरा बेटा भारवि दो दिनों से घर पर नहीं है। वह दो दिन पहले घर छोड़कर गुस्से में चला गया है। तब भारती ने सुशीला से कहा-आज ही सुबह मैं उसे मालिनी तट पर ध्यान लगाए बैठे देखा हूँ, मुझे लगा है कि वह माता सरस्वती की उपासना कर रहा है। मैने उनका ध्यान भंग नहीं करना चाहा। मैने सोचा कि बाद में वार्तालाप कर लूँगी। इतना कहकर भारती वहाँ से जाने लगी तब सुशीला उससे कहती है कि इस बीच भारवि के बारे में कुछ पता चले तो हमें जरूर बताना। - भारवि अपने पिता से क्यों बदला लेना चाहता था?
उत्तरः भारवि हर पंडितों के शास्त्रार्थ में जीत रहा था, जिसके कारण उसके मन में अहंकार बढ़ता जा रहा था। पिता ने सोचा कि इस तरह से उसके मन में अहंकार बढ़ता गया तब यह उन्नति नहीं कर सकता है। क्योंकि अहंकार उन्नति में बाधक होता है। इसलिए उसके पिता ने उन्हें पंडितों के सामने उसे भरी सभा में लांछित करते हुए कहते हैं कि तुम मर्ख, दम्भी और अज्ञानी हो। वहाँ पर उपस्थित पंडित लोग भारवि को देखकर परिहास करने लगे और हँसने लगे।भारवि क्रोध और गलानी से भर गया। उसने समझा कि जब तक मेरे पिता जिंदा हैं, मैं ऐसे ही अपमानित होता रहूँगा। इसलिए वह अपने पिता से बदला लेना चाहता था। - अहंकार उन्नति में बाधक हैं। एकांकी के आधार पर श्रीधर के इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः श्रीधर का यह कथन था कि अहंकार उन्नति में बाधक हैं। भारवी श्रीधर का पुत्र था। वह शास्त्रार्थ में पंडितों को पराजित करता जा रहा था। उसके साथ ही उसके अंदर घमंड की भावना बढ़ती जा रही थी। यह श्रीधर को बर्दाश्त से बाहर था। इसलिए उन्होंने भरी सभा में अपने पुत्र को उग्र रूप से पड़ी तारना किया। उसने कहा तुम महामूर्ख, दम्भी और ज्ञानी हो। वे उसका भला चाहते थे। वे यह नहीं चाहते थे कि मेरा पुत्र अहंकारी या दंभी बनें। अहंकार व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकता है। अहंकार उसकी प्रतिभा का भी एक प्रकार से हनन करता है। अनुशासन के बिना व्यक्ति जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता है और वह आगे बढ़ भी गया तो अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता है। - ग्लानी और जीवन के संबंध में श्रीधर के क्या विचार हैं?
उत्तरः ग्लानि (दुःख, खेद) और जीवन के संबंध में श्रीधर के विचार इस प्रकार है- गलानी से जीवन उत्पन्न नहीं होता। जीवन से गलानी उत्पन्न होती है। इस तरह गलानी प्रधान नहीं है। जीवन प्रधान है। श्रीधर अपने पुत्र भारवि से कहते हैं कि जब तुम जीवन के अधिकारी हो तो जीवन की शक्ति से ही ग्लानी को दूर करो। तलवार की अपेक्षा क्यों करते हो? तुम्हारे हाथों में लेखनी चाहिए, तलवार नहीं। ग्लानी काले बादल के समान है, जो जीवन के चंद्र को मिटा नहीं सकता। कुछ क्षणों के लिए उसके प्रकाश को रोक नहीं सकता है। ग्लानी के पोषण के लिए ब्रह्मदेव की आवश्यकता नहीं है। - प्रायश्चित को लेकर पिता और पुत्र के बीच हुए संवाद को लिखिए।
उत्तरः प्रायश्चित को लेकर पिता और पुत्र के बीच का संवाद इस प्रकार जब भारवि अपने अपमान का बदला लेने के लिए तलवार उठा लिया और कहा कि मैं इसी तलवार से अपने पिता की हत्या कर दूंगा। तब वही पर माँ और पिता में भारवि के बारे में बातचीत चल रही थी। पिता माँ को समझा रहे थे कि भारवि को जीत के कारण उसमें अहंकार बढ़ता जा रहा था। इसलिए मैने उसका भरी सभा में अपमान किया। ताकि उसमें अहंकार नहीं बढ़े। क्योंकि अहंकार उन्नति में बाधक होता है। पिता के क्रोध में पुत्र के प्रति मंगल की कामना छिपी रहती है। माँ ने पिता से कहा-आप कितने महान पिता है। जो अपने पुत्र के मंगल कामना के बारे में सोचते रहते हैं। यह बात सुनकर भारवि को अपने आप पर गलानी (Guilt) होने लगी। वह अपने पिता से क्षमा मांगने लगा और कहने लगा कि मैं आपकी भावना को समझ न सका और आपको जान से मारने के लिए तलवार उठा लिया था। मैं इसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ। मैं अपने आप को भी क्षमा नहीं कर सकता हूँ। इस प्रायश्चित के लिए आप हमें मृत्युदंड दीजिए। नहीं तो मैं आत्महत्या कर लूँगा। पिता ने पुत्र से कहा कि इसके लिए मृत्युदंड सीमित नहीं है। इस अपराध के लिए तुम अपनी माँ की सेवा करो। या इसके लिए अलग विधान है कि तुम 6 माह के लिए ससुराल जाओ और वहाँ जाकर सेवा करना और जूठे भोजन पर अपना पोषण करना और आज से यह प्रायश्चित आरम्भ हुआ। वह अपने माता-पिता से आशीर्वाद लेकर उसी समय ससुराल चला गया। जाते समय पिता ने कहा-इससे तुम्हारे अंदर का अहंकार मिट जाएगा। प्रायश्चित के लिए यही दंड विधान है। - भारवि ने अपने पिता से किस प्रकार का दंड चाहा और उसे क्या दंड मिला?
उत्तरः भारवी बदले की आग में जलते हुए अपने पिता की हत्या करना चाहता था। भारवि के प्रताडना के पीछे उसकी मंगलकामनाएँ छिपा हुआ था। इस बात का पता चलने पर हुआ लज्जित हो जाता है। वह अपने पिता से अपना मस्तक उसी तलवार से काटने को कहता है जिससे उसकी ग्लानी मिट जाए। पितृ हत्या का दंड पुत्र हत्या नहीं है। भारवि कहता है कि पाप के लिए न सही, मेरे प्रायश्चित के लिए भी तो कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। अगर आप चाहते हैं कि आपका पुत्र जीवित रहें, तो अपने पुत्र को दंड दीजिए। तब पिता ने भारवि से कहा- इस अपराध के लिए तुम अपनी माँ की सेवा करो। या इसके लिए अलग विधान है कि तुम 6 माह के लिए ससुराल जाओ और वहाँ जाकर सेवा करो और जूठे भोजन पर अपना पोषण करो और आज से यह प्रायश्चित आरम्भ हुआ। वह अपने माता-पिता से आशीर्वाद लेकर उसी समय ससुराल चला गया। जाते समय पिता ने कहा-इससे तुम्हारे अंदर का अहंकार मिट जाएगा। प्रायश्चित के लिए यही दंड विधान है।

Leave a comment