i.एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
- मुस्कराते फूल को क्या आना चाहिए?
उत्तरः मुस्कराते फूल को मुरझाना भी आना चाहिए। - मेघ में किस चीज़ की चाह होनी चाहिए?
उत्तर: मेघ में घुल जाने की चाह होनी चाहिए। - आँखों की सुन्दरता किससे बढ़ती है?
उत्तरः आँखों की सुंदरता आँसू रूपी मोतियों से बढ़ती है। - प्राणों की सार्थकता किसमें है?
उत्तरः प्राणों की सार्थकता पीड़ा को सहन करने में है। - कवयित्री को किसकी चाह नहीं है?
उत्तरः कवयित्री को अमरों के लोक की चाह नहीं है। - कवयित्री किस अधिकार की बात कर रही है?
उत्तरः कवयित्री परिस्थितियों से लड़ते हुए मिट जाने की अधिकार की बात कर रही है। - परमात्मा की करुणा से कवयित्री को क्या मिला?
उत्तरः परमात्मा की करुणा से कवयित्री को मिटने का अधिकार मिला।
।।. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
- फूल एवं तारों के विषय में कवयित्री महादेवी वर्मा क्या कहती है?
उत्तरः फूल एवं तारों के विषय में कवयित्री-महादेवी वर्मा कहती है कि यह जीवन नश्वर है। आज या कल नाश होने वाला है। इसलिए इस पर कभी भी गर्व नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार फूल खिलकर एक दिन वह भी मुरझा जाता है। उसी तरह रात में तारे टिमटिमाते हैं और सुबह होते ही लुप्त हो जाते हैं। जो मनुष्य दुख नहीं सह सकता, उसे सुख की चाह नहीं रखनी चाहिए। सुख और दुख जीवन में आते रहते हैं। उनसे मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए। इस तरह कवयित्री महा देवी-वर्मा ने लोगों को समझाया हैं। - बादल एवं वसंत ऋतु से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर: बादल एवं वसंत ऋतु से हमें प्रेरणा मिलती है कि जिस प्रकार बादल कभी-न- कभी घुलकर, कहीं-न-कहीं बरस कर, इस धरा को शीतलता प्रदान करती है। वैसे ही हमें दूसरों की पीड़ा में शामिल होकर उसकी पीड़ा को दूर करने का कोशिश करना चाहिए। ऋतुराज वसंत से यह प्रेरणा मिलती है कि वह जिस प्रकार बार-बार नूतन बनकर आता है, नए उमंग भरकर सुनहला बना देता है। वैसे ही हमें भी जीवन में नित नए प्रयोग करते रहना चाहिए।
- जीवन की सार्थकता किसमें है?
उत्तर: महा देवी वर्मा कहती हैं कि जीवन में सुख और दुख दोनों का समान महत्व है। ये जीवन के अभिन्न अंग है। जिस तरह मेघ की सार्थकता पिघल कर बरसने में है, जग को आनंद देने में है। उसी तरह जीवन की सार्थकता परिस्थितियों का सामना करने में है, न कि उनसे पलायन करने में। मनुष्य के लिए आवश्यक है कि यह जीवन को उसकी परिपूर्णता में स्वीकार करें। - कवयित्री अमरों के लोक को क्यों ठुकरा देती है?
उत्तरः कवयित्री महा देवी वर्मा जी का विश्वास है कि वेदना एवं करुणा उन्हें आनंद की चरमावस्था तक ले जा सकते हैं। उन्होंने वेदना का स्वागत किया है। उनके अनुसार जिस लोक में दुख नहीं, वेदना नहीं, ऐसे लोक को लेकर क्या होगा? जब तक मनुष्य दुख न भोगे, अंधकार का अनुभव न करें, तब तक उसे सुख एंव प्रकाश के मूल्यों का आभास नहीं होगा। जीवन नित्य गतिशील है। अतः इसमें उत्पन्न होने वाले संदर्भों को रोका नहीं जा सकता। जीवन की महत्ता परिस्थितियों का सामना करने में है। उनसे भोगने में नहीं। कवयित्री अमरों के लोक को ठुकराकर अपने मिटने के अधिकार को बचाए रखना चाहती है। - अधिकार कविता में प्रयुक्त प्राकृतिक तत्वों के बारे में लिखिए।
उत्तरः महादेवी वर्मा छायावादी कवयित्री थी। प्रकृति वर्णन छायावाद का प्रमुख अंग है। अधिकार कविता में भी कवयित्री ने कई प्राकृतिक तत्वों के द्वारा हमें संदेश दिया है। फूल, तारे, मेघ, वसंत ऋतु आदि प्राकृतिक तत्वों द्वारा दुखी एवं वेदना का अनुभव कराया है। नीले मेघों को घुलना चाहिए और वसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आना स्वाभाविक है। उसी तरह मानव जीवन में सुख-दुख समान है। दुख, वेदना, यातना की अनुभूति कर धैर्य से सामना करना चाहिए।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
ऐसा तेरा लोक वेदना, नहीं, नहीं जिसमें अवसाद, जलना जाना नहीं नहीं-जिसने जाना मिटने का स्वाद !
प्रसंग: कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित अधिकार पाठ से लिया गया है।
संदर्भ: प्रस्तुत कविता को महादेवी वर्मा ने लोगों से कहा है।
स्पष्टीकरणः महादेवी वर्मा इन पंक्तियों में कहती है कि जिन लोगों में अवसाद नहीं, वेदना नहीं, ऐसे लोगों को लेकर क्या होगा? जो खुद अपने लिए जीता है, उसका जीना भी क्या? जो परिस्थितियों का डटकर सामना करता है, वही असली जिंदगी जीना जानता है। जिसमें आग नहीं है, जिसने जलना नहीं जाना। वह तो खुशी से मर मिटना भी नहीं जानता है। जो दुख का सामना करना जानता है, वह मर मिटना भी जानता है। वही मुसकुराना भी जानता है।
विशेषताः जीवन में सुख दुख आता ही रहता है इसलिए दुख से कभी घबराना नहीं चाहिए।

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