1 .एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
- कवि-दुष्यंत कुमार के अनुसार जनता की पीड़ा किसके समान है?
उत्तर: कवि – दुष्यंत कुमार के अनुसार जनता की पीड़ा पर्वत के समान है। - पीर पर्वत हिमालय से क्या निकलनी चाहिए?
उत्तर: पीर पर्वत हिमालय से गंगा निकलनी चाहिए। - दीवार किसकी तरह हिलने लगी?
उत्तरः दीवार परदों की तरह हिलने लगी। - पीड़ित व्यक्ति को किस प्रकार चलना चाहिए?
उत्तर: पीडित व्यक्ति को हाथ लहराते हुए चलना चाहिए। - कवि का क्या मकसद नहीं है?
उत्तर: कवि को केवल हंगामा खड़ा करना मकसद नहीं है। - सीने में क्या जलनी चाहिए?
उत्तर: सीने में आग जलनी चाहिए। - कवि के अनुसार क्या शर्त थी?
उत्तर: कवि के अनुसार दीवारों के साथ बुनियाद भी हिलनी चाहिए।
II निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
- कवि दुष्यंत कुमार के अनुसार समाज में क्या फैला हुआ है?
उत्तरः कवि-दुष्यंत कुमार के अनुसार समाज में दुख, दर्द, पीडा अब हद से भी ज्यादा हो गई है। उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। उनकी पीडा पर्वत की तरह ऊंची होती जा रही है। दुख के इस महा पर्वत को अब पिघलना चाहिए। समाज में लोग केवल भाषण देते हैं, शोर मचाते हैं। लेकिन समस्या का समाधान कोई नहीं करता है। समाज में हर जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है। कवि यहाँ पर परिवर्तन लाकर समाज में बदलाव लाना चाहते हैं। - ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ गज़ल से पाठकों को क्या संदेश मिलता है?
उत्तरः ‘हो गयी है पीर पर्वत सी’ गज़ल से कवि देशवासियों को जागरण का संदेश देती है। यह प्रगति वादी विचारधारा से प्रभावित होकर लिखी गई गज़ल है। जब तक देश में शोषित वर्ग का दुख दूर नहीं होता, तब-तक देश प्रगति के पथ पर नहीं जा सकता है। कवि-दुष्यंत कुमार दीन-दलितों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं। हर प्रांत के हर पीड़ित व्यक्ति को शान से जीने का अधिकार है। कवि फिर कहते है मेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही वो कहीं भी आग जलनी चाहिए। एसी व्यवस्था आनी चाहिए, जहाँ सभी लोग आराम से जिए। - पीड़ित व्यक्ति की संवेदना को कवि दुष्यंत कुमार ने किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तरः कवि-दुष्यंत कुमार द्वारा गज़ल शैली में लिखी गई कविता हो गई है पीर पर्वत-सी में कवि ने पीड़ित व्यक्तियों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है। दुखी लोगों की पीड़ा पर्वत सी बन गई है। उस पीडा रूपी पर्वत से कोई गंगा निकलनी चाहिए। मनुष्य-मनुष्य के बीच जो दीवारें बन गई है, उसे खत्म करने की आवश्यकता है। सिर्फ हंगामा खड़ा करना उद्देश्य नहीं होना चाहिए। जब्त की सूरत नहीं बदलेगी तब-तक बदलाव न हो सकेगा। कवि एक प्रकार की क्रांति चाहते है, जिससे लोगों को दुख दर्द से मुक्ति मिल सके।
III संदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
- ‘आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।’
प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ पुस्तक साहित्य गौरव के ‘हो गई है पीर पर्वत- सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता दुष्यंत कुमार हैं।
संदर्भ: इस गज़ल में कवि देशवासियों को जागरण का संदेश देते हैं।
स्पष्टीकरणः कवि कहते है कि आज यह जाति, भेदभाव, धर्म और शोषण की दीवारें ऐसे हिल रही है जैसे- खिड़कियों व दरवाजों के लगे हुए पर्दे हिल रहे हैं। अगर संपूर्ण बुनियाद ही हिल जाए, ताकि फिर से कुछ नया निर्माण किया जा सके। ऐसी शर्त रखे है कि परिवर्तन की चाह है, जिसमें धर्म, जाति का भेदभाव, शोषण, अत्याचार को जड़ से मिटाना चाहिए।
विशेषताः कवि समाज में परिवर्तन चाहता है। - ‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।’
प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ पुस्तक साहित्य गौरव के ‘हो गई है पीर पर्वत- सी’ नामक आधुनिक कविता सेलिया गया है। इसके रचयिता दुष्यंत कुमार हैं।
संदर्भ: इस गज़ल में कवि ने देशवासियों को जागरण का संदेश देते हैं।
स्पष्टीकरणः देश की तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन करते हुए कवि कहते है कि दुखी लोगों की पीड़ा पर्वत-सी बन गई है। उसे पिघलना चाहिए। मनुष्य-मनुष्य के बीच जो दीवार बन गई है, उस दीवार की बुनियाद हिलनी चाहिए। हर शहर, हर गाँव के दलित पीड़ित व्यक्ति को खुशहाली से जीना चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना कवि का उद्देश्य नहीं है। वे इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं। देश की परिस्थितियां बदलनी चाहिए। सभी को सुखी जीवन बिताने की व्यवस्था होनी चाहिए।
विशेषताः इसमें पूरे देशवासियों को जागरण का संदेश देते हैं।

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