1 एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
- बुद्धिहीन मनुष्य किसके समान है?
उत्तरः बुद्धिहीन मनुष्य बिना पूंछ और सींग के पशु के समान है। - किसके बिना मनुष्य का अस्तित्व व्यर्थ?
उत्तरः पानी /इज्जत के बिना मनुष्य का अस्तित्व व्यर्थ है। - चिता किसे चलती है?
उत्तरः चिता निर्जीव शरीर को जलाती है। - कर्म का फल देने वाला कौन है?
उत्तर: कर्म का फल देनेवाला ईश्वर है। - प्रेम की गली कैसी है?
उत्तर: प्रेम की गली अति सांकरी है। - रहीम किसे बावरी कहते हैं?
उत्तरः रहीम जीभ को बावरी कहते हैं? - रहीम किसे धन्य मानते हैं?
उत्तर: रहीम कीचड में रहने वाले थोड़े से पानी को धन्य मानते हैं। - चिंता किसे जलाती है?
उत्तरः चिंता जीवित शरीर को जलाती है।
II निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
- रहीम जी ने मनुष्य की प्रतिष्ठा के संबंध में क्या कहा है?
उत्तरः रहीम मनुष्य की प्रतिष्ठा के बारे में कहते हैं – यदि मनुष्य विद्या-बुद्धि न हासिल करें, दान धर्म न करें, तो इस पृथ्वी पर उसका जन्म लेना ही व्यर्थ है। वह उस पशु के समान है जिसकी सींग और पूँछ नहीं होती है। विद्या-बुद्धि और धन-धर्म से ही मनुष्य की प्रतिष्ठा बढ़ती है और यश मिलता है। आत्मसम्मान के बिना सब कुछ शून्य है। प्रतिष्ठा के बिना मनुष्य की शोभा नहीं बढ़ती है। उसका जीवन ही व्यर्थ हो जाता है। - रहीम जी ने चिता और चिंता के अंतर को कैसे समझाया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: रहीम जी चिता और चिंता के अंतर स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि चिता केवल निर्जीव शरीर को जलाती है। लेकिन चिंता जीवित मनुष्य को निरन्तर जलाती रहती है। चिंता चिता से भी ज्यादा दुःखदाई होती है। चिंता चिता से अधिक विनाशकारी होती है। इसलिए चिंता का धैर्य से सामना कर उसे दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। - कर्मयोग के स्वरूप के बारे में रहीम के क्या विचार हैं?
उत्तर: रहीम के अनुसार मनुष्य को आलसी न होकर सदा कर्म में लगे रहना चाहिए। कर्म करते रहना चाहिए। उसकी फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। क्योंकि कर्म का फल देनेवाला भगवान होता है। उदाहरण के लिए मनुष्य के हाथ में पाँसे होते हैं। खेल का दाँव और परिणाम अपने हाथ में नहीं होता है।
- अहंकार के संबंध में रहीम के विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तरः रहीम कहते हैं कि हमें अपने मन में किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं रखना चाहिए। क्योंकि जब तक हम में अहंकार रहेगा तब तक ईश्वर प्रसन्न नहीं होंगे। जब अहंकार छोड़ देंगे, तो ईश्वर की कृपा होगी। जहाँ अहंकार है वहाँ भगवान नहीं है और जहाँ भगवान है, वहाँ आकार नहीं है। - वाणी को क्यों संयत रखना चाहिए?
उत्तरः रहीम कहते हैं कि वाणी को नियंत्रण में रखना चाहिए। क्योंकि वाणी ही रिश्ते बनाती हैं और वाणी ही रिश्ते को बिगाड़ती है। वाणी का प्रयोग जीभ से होता है और जब जीभ उल्टी-सीधी बातें कहकर खुद अंदर चली जाती है, लेकिन जूते सिर को ही खाने पड़ते हैं। - भगवान की अनन्य भक्ति के बारे में रहीम क्या कहते हैं?
उत्तरः रहीम भगवान की अनन्य भक्ति के बारे में कहते हैं कि भले ही कीचड का पानी थोड़ा ही क्यों न हो, पर वह पीने लायक होता है और समुद्र का पानी बहुत सारा होता है, पर वह खड़ा होने के कारण पीने लायक नहीं होता है। यानी बड़ी बात बोलने से कोई बड़ा नहीं होता है। चीज़ कितनी ही छोटी क्यों न हो मगर जो दूसरों की मदद करता है वही बड़ा आदमी कहलाता है। इसलिए व्यर्थ की बडाई करना व्यर्थ होता है। जो दूसरों की सहायता नहीं करता है उसका जीवन ही व्यर्थ होता है। इसलिए हमें पूरे सच्चे मन से परमात्मा पर विश्वास करके उनकी साधना करनी चाहिए। क्योंकि उन्हें सब कुछ पता है और उन्हें देखभाल करने की क्षमता भी है।
III संदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
- ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून ॥’
प्रसंग: प्रस्तुत दोहे को कवि-रहीम के द्वारा लिखित रहीम के दोहे पाठ से लिया गया है।
संदर्भ: प्रस्तुत दोहे में कवि- रहीम ने मनुष्य की प्रतिष्ठा के संबंध में विचार प्रकट किया है।
स्पष्टीकरणः प्रस्तुत दोहे में रहीम ने बताया है कि पानी के तीन अर्थ होते हैं। जिस प्रकार पानी के बिना चूना और पानी (चमक) के बिना मोती का मूल नहीं होता है। उसी प्रकार पानी (इज्जत- प्रतिष्ठा) के बिना मनुष्य का भी कोई मूल्य नहीं होता है। इसलिए पानी को बचाए रखना चाहिए।
विशेषताः इसलिए अपनी इज्जत-प्रतिष्ठा को बचाए रखना चाहिए। - ‘धनी रहीम जल पंख को, लघु जिए पियत अघाए।
उदित बढाई कौन है, जगत पियासो जाए॥’
प्रसंग: प्रस्तुत दोहे को कवि-रहीम के द्वारा लिखित रहीम के दोहे पाठ से लिया गया है।
संदर्भ: प्रस्तुत पद में रहीम ने बड़े लोगों के बारे में कहा है।
स्पष्टीकरणः प्रस्तुत पद के माध्यम से कवि-रहीम ने बताया है कि अगर कीचड के ऊपर थोड़ा भी पानी है तो उस पानी को सभी जीव जंतु पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं। लेकिन समुद्र में बहुत पानी रहता है, पर खड़ा होने के कारण कोई भी जीव जंतु नहीं पीता है। पूरे जगत के जीव-जंतु प्यासे ही वापस चले जाते हैं। ऐसी स्थिती में समुद्र की बडाई किस काम की है। उसी तरह आपके घर के आस-पास कोई बड़ा आदमी हैं। अगर वह आदमी आपके दुख में सहायक नहीं होता है, तो उसका सामर्थ्य बेकार है। जो व्यक्ति दुख में मदद करता है वही आदमी उसके लिए बड़ा होता है।
विशेषता: संपत्ति होने से मनुष्य बड़ा नहीं होता है। दान- पुण्य, सेवा और मदद करने से बड़ा और महान होता है।

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