i. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
- रैदास किसकी रट लगाए हुए हैं?
उत्तर: रैदास श्री राम की रट लगाए हुए हैं। - अंग-अंग में किसकी सुगंध समा गई है?
उत्तर: अंग-अंग में चंदन की/प्रभु की भक्ति की सुगंध समा गई है। - चकोर पक्षी किसे देखता रहता है?
उत्तरः चकोर पक्षी चाँद को देखता रहता है। - रैदास अपने आपको किसका सेवक मानते हैं?
उत्तर: रैदास अपने आपको श्रीराम का सेवक मानते हैं। - रैदास किस प्रकार जीवन का निर्वाह करने के लिए कहते है?
उत्तर: रैदास मेहनत/परिश्रम से कमाए हुए धन से जीवन का निर्वाह करने के लिए कहते है। - रैदास के अनुसार कभी भी क्या निष्फल नहीं जाता?
उत्तर: रैदास के अनुसार कभी भी परिश्रम से कमाए हुए धन /नेक कमाई निष्फल नहीं जाता। - रैदास किस राज्य की कामना करते हैं?
उत्तर:रैदास ऐसे राज्य की कामना करते हैं, जहाँ सभी को अन्न मिले।
।।. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
- रैदास ने भगवान और भक्त के संबंध को कैसे वर्णित किया है?
उत्तर: रैदास ने भगवान और भक्त के संबंध को अटूट संबंध कहा है। उन्होंने कहा है कि अगर भगवान चंदन है तो भक्त पानी है। प्रभु चाँद है तो भक्त चकोर पक्षी है। भगवान दीपक है तो भक्त बाती है। भगवान मोती है, तो भक्त पिरोने वाला धागा है। प्रभु जी तुम स्वामी है तो मैं आपका दास हूँ। इस तरह से रैदास ने भगवान और भक्त के संबंध को वर्णित किया है। - परिश्रम के महत्व के रैदास के क्या विचार है?
उत्तर: परिश्रम के महत्व के प्रति रैदास के विचार है कि परिश्रम से कमाए हुए धन कभी भी निष्फल नहीं जाता है। वह हमेशा फलता-फुलता है। गलत ढंग से कमाया हुआ धन एक दिन निष्फल (समाप्त) हो जाता है। इसलिए मनुष्य को अपने मेहनत के फल की आशा रखनी चाहिए। - रैदास ने किस प्रकार के राज्य का वर्णन किया है?
उत्तर: रैदास चाहते है कि ऐसा राज्य हो, जहाँ सभी लोग समान रुप से जीवन बसर कर सकें , जहाँ सभी को अन्न और सुख-सुविधाएँ मिले। जहाँ ऊँच-नीच का भेद-भाव न हो, और सभी लोग अपना जीवन सुख-चैन से बिता सकें ।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
प्रश्न 1.अब कैसे छूटै राम रट लागी । प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी ।
उत्तरःप्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।
संदर्भ : कवि ने भगवान के प्रति पूरे समर्पण भाव को स्वीकारते हुए स्वयं को पानी तथा प्रभु को चंदन के रूप में स्वीकार किया है।
स्पष्टीकरण : रैदास जी कहते हैं कि अब उनका मन राम में लग गया है। वह अब प्रभु-भक्ति से छूटेगा नहीं। वे कहते हैं- प्रभु जी चन्दन के समान है और हम पानी के समान है जिसके शरीर पर लगने से अंग-अंग सुगंध से भर गया है। प्रभु जी बादल के समान हैं और भक्त मोर के समान । आसमान में बादल दिखते ही मोर नाच उठता है। वैसे ही प्रभु का नाम सुनते ही भक्त रोमांचित हो जाता है। जिस प्रकार चकोर पक्षी चाँद को निहारता है वैसे ही रैदास प्रभु की ओर निहारते रहते हैं।
विशेष : रैदास जी की भक्ति प्राकृतिक रूपकों के माध्यम से उदाहरणों से समझाई गई ।
प्रश्न 2.
प्रभु जी तुम दीपक, हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती। प्रभु जी तुम मोती, हम धागा, जैसे सोने मिलत सुहागा ॥
उत्तरः
प्रसंग : प्रस्तुत् पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ से लिया गया है जिसके कवि संत रैदास हैं।
संदर्भ : इसमें रैदास जी भक्त और भगवान के बीच के संबंध का वर्णन करते हैं।
स्पष्टीकरण : भगवान और भक्त के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हुए रैदास जी कहते हैं कि भगवान के बिना भक्त का कोई अस्तित्व नहीं है। प्रभु जी यदि दीप हैं तो भक्त बाती के समान है। दोनों मिलकर प्रकाश फैलाते हैं। प्रभु जी यदि मोती हैं तो भक्त धागा है, दोनों मिलकर सुंदर हार बन जाते हैं। दोनों का मिलन सोने पर सुहागे के समान है। दास्य भक्ति, शरणागत तत्व भी इसमें दर्शाया गया है। वे (रैदास) प्रभुजी को स्वामी मानते हैं और अपने को उनका दास या सेवक मानते हैं।
विशेष : रैदास जी भगवान और भक्त के संबंध को विभिन्रू रूपकों के माध्यम से व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 3.
ऐसा चाहो राज में, जहाँ मिले सबन को अन्न । छोटा-बड़ो सभ सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न ।।
उत्तरः
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘रैदासबानी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत पद में रैदास जी समाज के सभी वर्ग के लोगों के प्रति समान भाव से हितकारी एवं सुखी राज्य की कामना करते हैं।
स्पष्टीकरण : कवि संत रैदास इस पद के माध्यम से समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए चाहें वह छोटा हो या बड़ा एक ऐसे राज्य की कामना करते हैं जहाँ सभी सुखी हों, जहाँ सभी को अन्न मिले, जिसमें कोई भूखा-प्यासा न रहे, जहाँ कोई छोटा-बड़ा न होकर एक समान हो। ऐसे राज्य से रैदास को प्रसन्नता होती है।
विशेष : रैदास जी समानता, समृद्धि और सभी के लिए सुख-शांति वाला समाज चाहते हैं।
प्रश्न 4.
रैदास श्रम करि खाइहि, जो लौ पार बसाय । नेक कमाई जउ करइ, कबहुँ न निहफल जाय ।।
उत्तरः
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता संत रैदास हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत पद में रैदास जी श्रम के महत्त्व के बारे में बताते हैं |
स्पष्टीकरणः इस पद्य में रैदास ने श्रम की महत्ता पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार श्रम, लगन, निष्ठा व ईमान से किया गया प्रत्येक कार्य श्रेष्ठ व फलदायक होता है। रैदास स्वयं कड़ी मेहनत कर कार्य करना चाहते हैं। आजीवन इसी तरह श्रम साध कर अपनी जिन्दगी गुजारना चाहते हैं। ऐसे नेक कमाई कभी निष्फल नहीं होगी, ऐसा विश्वास रैदास को भरपूर है।
विशेष : भाषा – ब्रज। श्रम की महत्ता का महत्व दर्शाया है।नेक और सही कमाई कभी व्यर्थ नहीं जाती।

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