l. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिएः
- किसके सम्मेलन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है?
उत्तरः भूमि, जन और संस्कृति के सम्मेलन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। - किस की कोख में अमूल निधियाँ भरी है?
उत्तरः धरती माता की कोख में अमूल निधियाँ भरी है। - सच्चे अर्थों में ही पृथ्वी पुत्र कौन है?
उत्तरः निष्काम भाव से सेवा करने वाले ही सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है। - पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य क्या है?
उत्तरः माता के प्रति अनुराग और सेवाभाव ही पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य है। - माता अपने सब पुत्रों को किस भाव से चाहती है?
उत्तरः माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। - राष्ट्र का तीसरा अंग कौन-सा है?
उत्तरः राष्ट्र का तीसरा अंग संस्कृति है। - राष्ट्र की वृद्धि किसके द्वारा संभव है?
उत्तरः राष्ट्र की वृद्धि संस्कृति के द्वारा संभव है। - राष्ट्र का सुखदायी रूप क्या है?
उत्तरः राष्ट्र का सुखदायी रूप समन्वययुक्त जीवन राष्ट्र का सुखदायी रूप है। - संस्कृति का अमित भण्डार किसमें भरा हुआ है?
उत्तरः संस्कृति का अमित भण्डार स्वच्छंद लोक गीतों और विकसित लोक कथाओं में भरा हुआ है। - राष्ट्र का स्वरूप पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तरः राष्ट्र का स्वरूप पाठ के लेखक श्री वासुदेव शरण अग्रवाल है।
II .निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
- राष्ट्र को निर्मित करने वाले तथ्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तरः भूमि भूमि पर बसने वाले जन और जन की संस्कृति इन तीनों के सम्मेलन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। भूमि के प्रति हम जीतने जागृत होंगे उतनी ही हमारी राष्ट्रीयता बलवंत होगी। मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा नाम है। हम सब धरती माँ के पुत्र हैं। राष्ट्र का तीसरा अंग संस्कृति है। - धरती वसुंधरा क्यों कहलाती है?
उत्तरः धरती माता की कोख में अमूल्य निधियां भरी है। जिनके कारण वह वसुंधरा कहलाती है। लाखों करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातु पृथ्वी के गर्भ में मिला है। नदियों ने 20 फीसदी का अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथ्वी की देह को सजाया है। पृथ्वी की गोद में जन्म लेने वाले जड, पत्थर कुशल शिल्पियों से संवारे जाने पर अत्यंत सुंदर के बन जाते हैं। - राष्ट्र निर्माण में जन का क्या योगदान होता है?
उत्तरः जन के हृदय में राष्ट्रीयता कि कुंजी है। इसी भावना से राष्ट्र निर्माण के अंकुर उत्पन्न होते हैं। जो जन पृथ्वी के साथ माता और पुत्र के संबंध को स्वीकार करता है उसे ही पृथ्वी के वरदानों में भाग लेने का अधिकार होता है। माता के प्रति अनुराग और सेवाभाव पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य है, जो जन मातृभूमि के साथ अपना संबंध जोड़ना चाहता है। उसे अपने कर्तव्यों के प्रति पहले ध्यान देना चाहिए। - लेखक ने संस्कृति को जीवन विटप का पुरुष क्यों कहा है?
उत्तरः राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन के साथ-साथ जन की संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है। यदि भूमि और जन अपनी संस्कृति से विरहित कर दिए जाएं तो राष्ट्र का लोप समझना चाहिए। जीवन के विटप का पुष्प संस्कृति है। उन संस्कृतिक सौंदर्य और सौरभ में ही राष्ट्रीय जन के जीवन का यश निहित है। - समन्वय युक्त जीवन के संबंध में वासुदेव शरण अग्रवाल के विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इसी प्रकार पृथ्वी पर बसने वाले सभी जन बराबर है। उनमें ऊंच और नीच का भाव नहीं है। ये जन अनेक प्रकार की भाषाएँ बोलने वाले और अनेक धर्मों को मानने वाले हैं। फिर भी ये सब मातृभूमि के ही पुत्र हैं।
III. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
- भूमि माता है, मैं उसका पुत्र हूँ।
प्रसंगःप्रस्तुत वाक्य को लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नाम पाठ से लिया गया है।
संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक ने लोगों से कहा है कि भूमि के प्रति प्रेम, आदर और सेवा भाव रखो।
स्पष्टीकरणः मनुष्य अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है, लेकिन बाद में उसका भरण-पोषण करने वाली माता पृथ्वी माता है। पृथ्वी न हो तो अन्न नहीं, जीवन नहीं, संस्कृति नहीं, पृथ्वी और जन दोनों के सम्मेलन से ही राष्ट्र का स्वरूप संपादित होता है। इसलिए लेखक कहते हैं कि भूमि माता है और हम सब उनके पुत्र हैं।
विशेषताः अपनी माँ की तरह धरती माँ का भी सम्मान करना चाहिए। - यह प्रणाम भाव ही भूमि और जन का दृढ बंधन होता है।
प्रसंगः प्रस्तुत वाक्य को लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नाम पाठ से लिया गया है।
संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक ने लोगों से कहा है।
स्पष्टीकरणः लेखक कहते हैं कि लोगो के हृदय में भूमि माता है। मैं उनका पुत्र हूँ। इसी भावना के द्वारा मनुष्य पृथ्वी के साथ अपने सच्चे संबंध को प्राप्त करते हैं। जहाँ यह भाव नहीं हैं, वहाँ जन और भूमि का संबंध अचेतन और जड़ बना रहता है। जिस समय जन का हृदय भूमि के साथ, माता और पुत्र के संबंध को पहचानता है उसी क्ष्ण श्रद्धा से भरा हुआ उसका प्रमाण मिलता है।
विशेषताः पृथ्वी माता के प्रति प्रेम को दर्शाया गया है। - जन का प्रवाह अनंत होता है।
प्रसंगः प्रस्तुत वाक्य को लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नाम पाठ से लिया गया है।
संदर्भः प्रस्तुत वाक्य लेखक ने जन के प्रवाह के बारे में कहा है।
स्पष्टीकरणः हजारों वर्षों से भूमि के साथ राष्ट्रीय जन में स्थापित किया है। उसका प्रवाह अनंत है। जब तक सूरज की किरणें संसार को अमृत से भरता रहेगा, तब-तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है। जन का जीवन नदी के प्रवाह की तरह है, जिसमें कर्म और श्रम के द्वारा उत्थान के अनेक घाटों का निर्माण करना होता है।
विशेषताः लेखक ने भूमि, जन, संस्कृति के बारे में कहा है। - संस्कृति जन का मस्तिष्क है।
प्रसंगः प्रस्तुत वाक्य को लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नाम पाठ से लिया गया है।
संदर्भः प्रस्तुत वाक्य को लेखक ने संस्कृति को मस्तिष्क कहा है।
स्पष्टीकरणः संस्कृति जन का मस्तिष्क है। बिना संस्कृति के जन की कल्पना नाम मात्र है। संस्कृति के विकास के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि संभव है। राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन की संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है।
विशेषताः लेखक के अनुसार संस्कृति सारे जन समाज को जोड़ती है। - उन सब का मूल आधार पारस्परिक सहिष्णुता और समन्वय पर निर्भर है।
प्रसंगः प्रस्तुत वाक्य को लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नाम पाठ से लिया गया है।
संदर्भः प्रस्तुति में लेखक ने संस्कृति के बारे में लोगों से कहा है
स्पष्टीकरणः प्रत्येक जाति अपनी-अपनी विशेषज्ञों के साथ संस्कृति का विकास करती है। प्रत्येक जन की अपनी-अपनी भावनाओं के अनुसार अलग-अलग संस्कृतियां राष्ट्र में विकसित होती है। सब का मूल आधार पारस्परिक सहिष्णुता और समंवय में पर निर्भर है।
विशेषताः लेखक ने कहा है कि संस्कृति ही राष्ट्र का स्वरूप बनाते हैं।
lV .सूचना अनुसार काल बदलिएः
- मनुष्य सभ्यता का निर्माण करेगा ।[भविष्यत काल में बदलिए]
उत्तरः मनुष्यता का निर्माण किया था। - माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती थी।[वर्तमान काल में बदलिए]
उत्तरः माता अपने सभी पुत्रों को समान भाव से चाहती है। - हमारे ज्ञान के कपाट खुलते हैं।[भूतकाल में बदलिए]
उत्तरः हमारे ज्ञान के कपाट खुलेंगे।
V) कोष्ठक में दिए गए कारक चिन्हों से रिक्त स्थान भरिए :
(पर, का, के, में)
१) जन … का…….. प्रवाह अनंत होता है।
२) जीवन नदी…..के…… प्रवाह की तरह है।
३) पृथ्वी के गर्भ … में… अमूल्य निधियाँ हैं ।
४) भूमि …पर….. जन निवास करते हैं।
VI .समानार्थक शब्द लिखिए:
1) आकाश आसमान, गगन
2) नारी – औरत, महिला
3) धरती वसुंधरा, पृथ्वी
4) सूर्य – दिनकर, सूरज
5) पेड़ – वृक्ष, वट
VII .विलोम शब्द लिखिए:
1) प्रसन्न x अप्रसन्न
(2) स्वाभाविक x अस्वाभाविक
(3) जनम x मरण
(4) अमृत x विष
(5)उत्साहxनिरुत्साह

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