। एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:

1. सीताजी का मन कहाँ भाया?

उत्तरः सीताजी का मन कुटिया में भाया।

2. सीताजी के प्राणेश कौन हैं?

उत्तरः सीताजी का प्राणेश श्री राम है।

3. सीताजी कुटिया को क्या समझती है?

उत्तरः सीताजी कुटिया को राजभवन समझती है।

4. नवीन फल कहाँ मिला करते हैं?

उत्तरः नवीन फल डाली-डाली में मिला करते हैं।

5. सीताजी की गृहस्थी कहाँ जगी?

उत्तरः सीताजी की गृहस्थी वन में जगी हैं।

6. वधु बनकर कौन आई है?

 उत्तरः वधू बनकर जानकी आई है।

7. सीता की सखियाँ कौन है?

उत्तरः सीता की सखियाँ मुनि बालाएँ है।


।।. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

1. सीताजी अपनी कुटिया में कैसे परिश्रम करती थी?

उत्तरः सीताजी जब वे वनवास जाने के लिए राजभवन छोड़कर श्री राम और लक्ष्मण सहित वन में कुटिया बसाती है। वहाँ उनका काम करने के लिए कोई दासी नहीं रहती है। फिर भी वह पसीना बहाकर सारे गृह कार्य करती है। जैसे-भोजन बनाना, कुटिया की सफाई करना, पानी लाना आदि। जिससे उनका आत्म धैर्य बढ़ता है और दूसरों पर निर्भर होने की आदत छूट जाती है। कुटिया में आकर सीता जी को घर और परिवार के महत्व का पता चलता है।

2. सीताजी प्रकृति सौंदर्य के बारे में क्या कहती है?

उत्तरः सीताजी प्रकृति सौंदर्य के बारे में कहती हैं कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे प्रकृति में रहने का और विचरण करने का अवसर मिला है। हरियाली की शुद्ध हवा, पशु पक्षियों का कलरव, लता, फूल आदि मन को प्रसन्न चित्त करने वाली प्रकृति की शोभा है। यह प्रकृति का माया लोक किसी राजभवन से कम नहीं है।

3. सीताजी कुटिया में कैसे सुखी है?

उत्तरः सीताजी को कुटिया ही राजभवन की तरह लग रही है, क्योंकि उनके प्राणेश श्री राम उनके साथ है। देवर लक्ष्मण भी सचिव की तरह परहरी बने हुए हैं। इसके अलावा प्राकृतिक सौंदर्य ने उनको मोह लिया है। सीताजी स्वावलंबी बनी हुई है। प्रकृति के कण-कण को सीताजी ने राजभवन के सुख वैभव के रूप में अपना लिया है।

4. कुटिया में राजभवन कविता का आशय संक्षेप में लिखिए।

उत्तरः कुटिया में राजभवन इस कविता का आशय है कि सीताजी वन में भी राज-सुख भोगती है। श्री रामचन्द्र जी स्वयं सीताजी के साथ-रहते हैं। देवर लक्ष्मण मंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं। यहाँ धन और राज्य वैभव का कोई मूल्य नहीं है।


।।।. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:

1. ‘औरों के हाथों यहाँ नहीं पलती हूँ, अपने पैरों पर खड़ी आप चलती हूँ, श्रमवारि बिंदु फल स्वास्थ्य शुक्ति फलती हूँ, अपने आंचल से व्यंजन आप झलती हूँ।

प्रसंगः प्रस्तुत पद को कवि-मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित ‘कुटिया में राजभवन’ नामक कविता पाठ से लिया गया है।

संदर्भः प्रस्तुत पाठ के माध्यम से सीताजी दूसरी महिलाओं से कहा है।

स्पष्टीकरणः इन पंक्तियों में सीताजी ने अपने स्वालंबन के बारे में कह रही है कि मैं यहाँ अपने पैरों पर खड़ी हूँ। दूसरों पर निर्भर नहीं हूँ। शरीर का वास्तविक आनंद तो परिश्रम से ही प्राप्त होता है। मैं अपने हाथों से हवा स्वयं झलती हूँ। खाना बनाती हूँ। अपने देवर और प्राणेश को खिलाती हूँ और खुद खाती हूँ। मैं इस कुटिया में रहकर बहुत खुश हूँ। विशेषताः अगर कुटिया में आपस में सभी के साथ प्रेम और संतोष है, तो कुटिया ही राजभवन के समान होता है।

2. ‘कहता है कौन कि भाग्य ठगा है मेरा? वह सुना हुआ भय दूर भगा है मेरा। कुछ करने में अब हाथ लगा है मेरा, वन में ही तो गृहस्थ जगा है मेरा।

प्रसंगः प्रस्तुत पद को कवि-मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित ‘कुटिया में राजभवन’ नामक कविता पाठ से लिया गया है।

संदर्भः प्रस्तुत पाठ के माध्यम से सीताजी दूसरी महिलाओं से कहा है।

स्पष्टीकरणः जीवन का आनंद वन में अनुभव करते हुए सीताजी कहती हैं कि कौन कहता है कि हमारा भाग्य ठगा गया है वास्तव में यहाँ हमारा भय मिट गया है यहाँ रहकर कुछ न कुछ करने में मन लगता है ऐसा लग रहा है कि वन ही वन में ही मेरा गृहस्थ झुक गया है मैं यहाँ अपने आप पर निर्भर हूँ

विशेषताः नारी को सुख-दुख में एक समान रहना और साधारण जीवन जीने का संदेश दिया है।

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