।.एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिएः

1. कवि अपने मित्र से क्या कहता है?

उत्तरः कवि अपने मित्र से कहता है कि वह अंधकार में डरा हुआ है और वह आकर अंधकार मिटा दें।

2. कभी अपने मित्र का स्वागत कैसे करता है?

उत्तरः कवि आपने मित्र का स्वागत झुककर तथा पूरे मन के साथ सिर नवाकर करता है।

3. कवि किस से बिछड़कर रह गया है?

उत्तरः कवि अपने मुग्ध मित्र से बिछड़कर रह गया है।

4. ‘तुम आओ मन के मुग्ध मीत’ कविता के कवि कौन है?

उत्तरः तुम आओ मन के मुग्ध मीत कविता के कवि- डॉ. सरगू कृष्णमूर्ति है।


II .निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

1. अपने मुग्ध मित्र से बिछुड़कर कवि की आत्मा कैसे तरफ रही है?

उत्तरः कवि कहता है कि मेरा जीवन अंधकारमय हो गया है। हे मित्र! तुम प्रकाश की किरण बनकर आ जाओ। मैं सूर्य-चंद्र की तरह प्रकाशमान हो सकूँ। तुम्हारे आने से प्रातः हुई और कोमल प्रीति मुस्कुराई। जीवन मृत्यु के साथ ही मेरे पाप मिट जाए और आत्मा पवित्र हो जाए। नतमस्तक होकर तुम्हारा स्वागत करता हूँ।

2. कवि आपने मित्र को किन-किन शब्दों में पुकारता है?

उत्तरः कवि- डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति जी अपने मित्र को मुग्ध मीत, मधुरमीत, जन्मों के जीवन मृत्यु मीत, हारों की मधुर मीत, देवताओं के आनंद गीत से आशा और शोभा के बीच आदि शब्दों से पुकारते हैं।

3. कभी अपने मित्र की जुदाई से कैसे व्याकुल हो रहा है?

उत्तरः कवि-सरगु कृष्णमूर्ति कहते हैं कि मेरे मित्र हमसे बिछुड़कर कितने दिन हो गए हैं कि लग रहा है युग बीत गए हैं। फिर भी मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। जैसे पेड़-पौधे वर्षा की कामना करते हैं। सम्पूर्ण संसार किसी न किसी स्वार्थ में फंसा हुआ है। जब कि तुम एक ही हो जो निस्वार्थ हो।

4. कभी कि दुखी आत्मा का परिचय दीजिए।

उत्तरः कवि अपनी दुखी और पीड़ित आत्मा के लिए कहता है कि हे मेरे मीत! मुझे चारों ओर से दुख, दीनता और दरिद्रता ने घेर लिया है। इन सबसे मैं दुखी हो गया हूँ। अब तुम आओ मेरे मित्र और मुझे इन झंझावातों से छुटकारा दिलाओ।


III. संदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:

  1. झन झनन झनन झंझा झकोर से झंकृत यह जीवन निशीथ,

 सब क्षणिक वणिक वत स्वार्थ मग्न तुम एक मात्र निस्वार्थ मित्र।

दुख दैन्य अश्रु दरिद्रय धार कर गय मुझे ही मनोनीत, तूफान और इस आंधी में, सुनवाने ने रज का जीव गीत ॥’

प्रसंगः प्रस्तुत कविता को कवि- डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित ‘तुम आओ मन के मुग्ध मीत’ कविता पाठ से लिया गया है।

संदर्भः कवि अपने दुख के बारे में अपने मित्र से कह रहे हैं।

स्पष्टीकरणः कवि कहते हैं कि झंकार करने वाले इस झंझापूर्ण जीवन की अर्धरात्रि में सब क्षणिक व्यापारी वृत्ति के लोग हैं। सब स्वार्थ में मग्न है। अतः तुम आओ और मुझे इनसे मुक्त करो। अपने निस्वार्थ भाव से मधुर गीतों से सारे पाप मिटा दो। मैं दुख दरिद्रता व दीनता में घिर गया हूँ। अतः तुम आओ और मुझे इस तूफान व आंधी के थपेड़ों से बचा लो। आशा है तुम मेरी व्यथा मिटा दोगे। क्योंकि तुम मेरे मधुर मीत हो।

विशेषताः कवि अपने दुख बाँटने के लिए अपने मित्र से सहायता माँग रहे हैं।

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