1 एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिएः
1. नारी कहाँ पत्थर तोड़ रही थी?
उत्तरः नारी इलाहाबाद के पथ पर पत्थर तोड़ रही थी।
2. पत्थर तोड़ती नारी के तन का रंग कैसा था?
उत्तरः पत्थर तोड़ती नारी के तन का रंग सांवला था।
3. नारी बार-बार क्या करती थी?
उत्तरः नारी बार-बार हथौड़े से पत्थर पर प्रहार करती थी।
4. नारी के माथे से क्या टपक रहा था?
उत्तरः नारी के माथे से पसीना टपक रहा था।
5. नारी कब पत्थर तोड़ रही थी?
उत्तरः नारी दोपहर की कड़ी धूप में पत्थर तोड़ रही थी?
6. तोड़ती पत्थर कविता के कवि कौन है?
उत्तरः तोड़ती पत्थर कविता के कवि- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
1. इलाहाबाद के पथ पर पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तरः इलाहाबाद के पथ पर एक महिला पत्थर तोड़ रही थी। वहाँ कोई छायादार पेड नहीं था। उसका तन सांवला था। पर वह भरे यौवन में थी। आँखें नीचे थी, और काम में तत्पर थी। वह बड़ा हथौडा हाथ में लिए बार-बार प्रहार करते हुए पत्थर तोड़ रही थी।
2. किन परिस्थितियों में नारी पत्थर तोड़ रही थी?
उत्तरः एक साधनहीन और असहाय नारी इलाहाबाद के पथ के किनारे बैठकर पत्थर तोड़ रही है। आसपास कोई छायादार पेड नहीं है। धूप चढ़ रही थी। कर्मी के दिन थे। शरीर को झुलसा देनेवाली धूप थी। गर्म हवा और धूल उड़ रही थी। उस परिस्थिति में वह नारी पत्थर तोड़ रही थी।
3. तोड़ती पत्थर कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः तोडती पत्थर कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने इलाहाबाद की एक सड़क के किनारे पत्थर तोड़ती मजदूर औरत का चित्रण किया है। एक मजदूर औरत तपती धूप में काम कर रही थी। उसी का मार्मिक चित्रण किया है। गर्मी के दिन थे। गर्म हवा और लू चल रही थी। उस दोपहरी में सड़क के किनारे वह पत्थर तोड़ रही थी। आसपास कोई छायादार पेंड नहीं था। कवि ने उस साँवली सलोनी निर्धन मजदूर औरत के कठिन परिश्रम की महत्त्व को प्रकट किया है।
III .ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
1. ‘चढ रही थी धूप गर्मियों के दिन दिवा का तमतमाता रूप। उठीं झुलसाती हुई लू
प्रसंगः प्रस्तुत पद को कवि-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित ‘तोडती पत्थर’ कविता पाठ से लिया गया है।
संदर्भ: कवि एक मजबूर स्त्री की परेशानियों के बारे में संकेत किया है।
स्पष्टीकरणः इलाहाबाद के पथ के किनारे पत्थर तोड़ने वाली नारी झुलसाती धूप में पसीना टपकाती हुई, वह अपने कार्य में मग्न रहती है। उसकी विवशता पर कवि का मन दुखी होता है। किंतु उस नारी के धैर्य तथा कार्य में लगन देखकर उसके प्रति सम्मान बढ़ जाता है।
विशेषताः कवि एक मजबूर स्त्री की परेशानियों के बारे में संकेत किया है।
2. ‘देखते देखा मुझे तो एक बार उस भवन की ओर देखा छिन्न तार देखकर कोई नहीं, देखा मुझे उस दृष्टि से जो मार खा रोई नहीं।’
प्रसंगः प्रस्तुत पद को कवि-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित ‘तोडती पत्थर’ कविता पाठ से लिया गया है।
संदर्भ: मजबूर स्त्री की विवशता पर बड़े लोगों को दया नहीं आती है, इसी चीज़ को दर्शाया गया है।
स्पष्टीकरणः कवि- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने एक दयनीय मजदूरिन की दशा को देख रहा था। मजदूरिन ने कवि को अपनी ओर देखते हुए देखा तो उसने भी दृष्टि उठाकर क्षण भर के लिए देखा। फिर उस वैभवशाली विशाल भवन की ओर देखा। जब उसे वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया, तब उसने विवशता से कवि के तरफ देखा। उसकी दृष्टि वैसी ही थी जैसे कोई व्यक्ति लगातार शोषण से भयभीत होकर रोता नहीं है, पर उसके आंसू सूख गए थे। इस प्रकार वह लग रही थी।
विशेषताः मजबूर स्त्री की विवशता पर बड़े लोगों को दया नहीं आती है, इसी चीज़ को दर्शाया गया है।

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